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________________ त्रयोदशः सर्गः उन्होंने दीक्षा धारण कर बारह वर्ष एवं साढे तेरह पक्ष तक उग्र तपोबल से निर्द्वन्द्व, अनन्त तथा कलहंस के समान उज्ज्वल केवलज्ञान को उत्पन्न किया। २०. मुनिमुनीर्यवणुवतिनोऽमितान्, विशवदर्शनिनो हय पदेशतः। शिवपुरं गमिनो विरचय्य च, विकचितं कचितं नियमैर्जगत् ॥ केवलज्ञान को प्राप्त कर भगवान् महावीर ने अपने उपदेशों के द्वारा साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविकाओं को सम्यग्दर्शी एवं मोक्षगामी बनाकर, इस संसार को वैधर्म्य से हटाकर नियमों में बांधा एवं विकश्वर भी किया। २१. समनुभूय सुतीर्थकृतां पदं, सकलकर्मरजांसि विधूय च । परममोदमहोदयनिर्वृते विपदं विपदन्तकरो बधे ॥ समस्त विपदाओं का अन्त करने वाले प्रभु ने तीर्थकर नाम पद का अनुभव कर, समस्त कर्मरजों को नष्ट कर परमानन्द एवं महोदय रूपी मोक्ष भूमि पर अपना स्थान बना लिया अर्थात् मोक्ष में पधार गये। वे महावीर प्रभु आज इस धरा पर दिखाई नहीं दे रहे हैं। २२. जिनमतं विततं वटवद्यतः, सकलसंयमिताश्च शिवंगताः। . गणधरःप्रथमोऽखिललन्धिभत्, क्व च स गोतम गोतम गोतमः॥ .. हे प्रभो ! जिनसे यह जिनमत वट वृक्ष की तरह विस्तार को प्राप्त हुआ और जिनके दीक्षित समस्त संत मोक्ष गये ऐसे समस्त लब्धियों के भंडार, प्रभु के प्रथम गणधर श्री गोतम स्वामी भी आज कहां हैं ? २३. विवरित गतिमुत्तमपञ्चमी, किमभवद् गणभून्ननु पञ्चमः । प्रथमपट्टधरो भवतां क्व यः, सुसमयः समयः समयो'ऽस्य च ॥ हे प्रभो! वे आपके प्रथम पट्टधर मानो पञ्चम गति को प्राप्त करने के लिये ही पंचम गणधर बने । सुंदर सिद्धान्तों के धारक तथा उत्तम भाग्यवान् उन सुधर्मा स्वामी का समय भी अब कहां है ? २४. परविरागमहाव्रतधारको, हृतसचीप्रमसुन्दरसुन्दरिः। ' चरमकेवलिजम्बुमुनीश्वरः, स्मृतिपथेऽतिपये हि च साम्प्रतम् ॥ १. शोभनाः सिद्धान्ता यस्य । २. सं-शुभं, अय:-भाग्यं यस्य । ३. अवसरः।
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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