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श्रीभिक्षमहाकाव्यम् संसार के उपकार और मोक्ष के उपकार पर स्वामीजी ने दृष्टान्त दिया-किसी को सर्प काट गया । गारुडिक ने झाड़ा देकर उसे बचा लिया। तब वह चरणों में सिर झुका कर बोला-इतने दिन तो जीवन माता-पिता का दिया हुआ था और आज से जीवन आपका दिया हुआ है। माता-पिता बोले-तुमने हमें पुत्र दिया है। बहिनों ने कहा--तुमने हमें भाई दिया है। स्त्री प्रसन्न होकर बोली-मेरी चूड़ियां और चूनरी अमर रहेगी, यह तुम्हारा ही प्रताप है।
प्रशंसा से आकीर्ण हृदय वाले सभी सगे-संबंधियों ने तथा मित्रों ने मृदु-मधुर वाणी में कहा-हमारे महान् भाग्योदय से आपने यह आश्चर्यकारी अमूल्य उपकार किया है।
किन्तु यह उपकार आत्मिक नहीं है, स्पष्टतया सांसारिक ही है। तथा यह उपकृति बहुमुखी है, मोह को उद्दीप्त करने के लिए दीपिका है और यह अपने आदर्श को विप्लावित करने वाली है, नष्ट करने वाली है । मोक्ष का उपकार कब कैसे ?
एक व्यक्ति को जंगल में सर्प ने डस दिया। अचानक वहां साधु आ गए । साधुओं को देखकर वह बोला - 'महाराज ! आप शीघ्र ही मुझे सिद्धमंत्र आदि से निविष करें।' साधु बोले 'यद्यपि हम इस विषय को जानते हैं, किन्तु हम ऐसे कार्यकलाप कर नहीं सकते। वे हमारे लिए अकल्पनीय हैं।' तब वह बोला-'अच्छा, तो आप कोई औषधि बताएं जिससे जहर निकल जाए।' मुनि बोले-'हम सर्पदंश की औषधि जानते हैं, पर बता नहीं सकते।' वह बोला-'फिर मुंह बांधकर चारों ओर ऐसे ही घूमतेफिरते हो या तुम्हारे में कोई करामात भी है ?' मुनि बोले-हमारे में ऐसी करामात है जिससे भव-भव में सर्प कभी काटता ही नहीं।' वह बोला'आप कृपाकर उस क्रिया को शीघ्र ही मुझे बताएं।'
__मुनि बोले-भाई ! तुम वैराग्यपूर्वक आगार सहित आमरण अनशन कर दो। उसने तब मुनियों के कथनानुसार अनशन स्वीकार कर लिया। मुनिवरों ने उसे नवकार महामंत्र सिखाया तथा उसके चित्त को अर्हत्, सिद्ध, साधु तथा धर्म-इन चार शरणों में समर्पित कर, पवित्र बनाकर उसका संरक्षण किया। वह अनशनपूर्वक मृत्यु को प्राप्त कर स्वर्ग में गया । कालान्तर में वह मोक्ष प्राप्त कर लेगा । यह मोक्ष का उपकार है।
१. भिदृ०, १२९।