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________________ श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् एक ही भाव के (क) धर्म और अधर्म का मेल कभी नहीं हो सकता । जो व्यक्ति एक ही क्रिया से धर्म और अधर्म दोनों की निष्पति मानते हैं, वे संसार एवं मोक्ष के मार्ग को एक करने वाले हैं, पर ऐसा हो नहीं सकता । ऐसा करने से दोनों ही चीजें विकृत बन जाती हैं । स्वामीजी ने दृष्टांत देते हुए कहाकिसी सेठ के घृत व सूंघने की तम्बाकू का व्यापार था । एक बार किसी कार्यवश सेठ को बाहर जाने का प्रसंग बन पड़ा । अपने लड़के के सामने बाहर जाने की बात रखते हुए दुकान की चिंता व्यक्त की । पुत्र ने कहा'चिता की कोई बात नहीं। दुकान का सारा काम मैं संभाल लूंगा । आप मुझे चीजों के भाव बतला दीजिए।' सेठ ने कहा - ' घी का भाव भी २॥ सेर का है और तम्बाकू का भाव भी २ || सेर का है। दोनों हैं । यों भाव बतलाकर तथा एक पात्र के खाली हुए बिना दूसरे को खोलने का निषेध कर कार्य विशेष के लिए सेठ कहीं बाहर चला गया । लड़का प्रातःकाल दुकान पर गया। दुकान में बैठने की संकड़ाई देख उसने सोचा - घृत का भी वही भाव है जो कि तम्बाकू का है तो फिर दो बर्तनों में दो चीजें अलग-अलग क्यों रखी जाएं और क्यों दुकान में इतनी जगह रोकी जाए। अगर इन दोनों को इकट्ठा कर दिया जाए तो दुकान में संकीर्णता न रहेगी और साथ-साथ में ग्राहक को भी एक वस्तु के बदले दो वस्तुएं एक साथ मिलने से खुशी होगी । ऐसा सोच आधे भरे हुए घृत और तम्बाकू के दो बर्तनों को एक में मिलाकर एक बर्तन की जगह खाली कर ली। अपनी बुद्धि की मन ही मन सराहना करने लगा । थोड़ी देर के बाद घृत लेने एक ग्राहक आया । सेठ के पुत्र ने तम्बाकू मिश्रित घृत दिखाया । 1 ग्राहक बोला—यह काला काला क्या है ? सेठ का पुत्र बोलाआपको एक चीज की जगह दो चीजें मिल रही हैं । तम्बाकु और घृत । ग्राहक बोला- क्या तुम मूर्ख नहीं हो ? ऐसा करने से घृत व तम्बाकू दोनों ही बिगड़ गये हैं । यों कहकर ग्राहक सौदा लिए बिना चला गया । इतने में ही एक ग्राहक तम्बाकू लेने आया । सेठ के पुत्र ने उसे घृत मिश्रित तम्बाकू दिखाई । वह भी उसकी बुद्धि पर तरस खाता हुआ चला गया। ऐसे दिन भर ग्राहकों के साथ तकरार होती रही । सेठ का पुत्र झुंझला कर घर आ गया। दो दिन बाद सेठ आया । पुत्र से सारी बात जानी। उसकी बुद्धि पर हंसते हुए सेठ बोला - इस मिलाये हुए घी तम्बाकू को अकुरड़ी पर डाल आओ । इन दोनों चीजों का मेल नहीं हो सकता ।' १३४ ― इसी प्रकार संसार एवं मोक्ष का मार्ग भी पूर्व और पश्चिम की तरह एक नहीं हो सकता । मोक्ष एवं संसार के मार्ग को एक करने वाले घृत व तम्बाकू को मिश्चित करने वाले सेठ के पुत्र के समान अविज्ञ हैं, मूर्ख हैं ।"
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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