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________________ १२८ श्रीभिक्षु महाकाव्यम् 1 सुनना और इस पगडंडी को मत छोड़ना । वे धूर्त आपको धोखा देने के लिए कहेंगे, सूरदासजी महाराज ! यह मार्ग नहीं, उत्पथ है । आगे बढ़ी -बड़ी खाइयां हैं, आप गिर जायेंगे । इस प्रकार की इन बातों पर आप बिल्कुल भी ध्यान न देते हुए आगे बढ़ते रहना एवं ऐसे दुष्टों को मारने के लिए आप अपनी झोली में ये पत्थर रखना व बोलने वाले की आवाज के अनुसार पत्थर फेंकते रहना । यों कहकर कुछ दूर तक ठग भक्त साथ में रहे फिर उत्सर्ग आदि के मिस से इधर-उधर होकर नौ-दो ग्यारह हो गए । अन्धे बाबा एक के पीछे एक चलने लगे । ज्यों-ज्यों आगे बढ़े संकड़ी पगडंडी व उबड़-खाबड़ मार्ग आता गया । पर भक्तों की वाणी पर विश्वस्त बाबों को इस दुर्गम पथ का कोई भी विचार नहीं आया। उन पहाड़ों में ईंधन आदि लेने के लिए आए हुए लकड़हारों ने आवाज लगाई - 'सूरदासजी महाराज ! आगे मत आइये ! आगे रास्ता नहीं है, आगे बड़ी-बड़ी खाइयां हैं । आप • गिर जायेंगे व मर जायेंगे ।' पर बाबों ने इस तरह की आवाज लगाने वालों को, ठग भक्तों के बतलाए गए संकेतों के अनुसार, लुटेरे समझ झोली में डाले हुए पत्थरों से उन पर वार करना प्रारम्भ कर दिया। बाबों के इस विलोम व्यवहार को देख उन लकड़हारों ने बोलना बंद कर दिया एवं उपेक्षा भाव बरतने लगे । अन्त में बाबे भटक गए और एक-एक कर खाइयों में गिरकर मर गए । इसी प्रकार सम्यक् ज्ञानचक्षु रहित लोगों को उन्मार्गानुयायी अपने कुतर्क इस प्रकार पकड़ा देते हैं कि वे समझाये जाने पर भी नहीं समझते । ६५. गळ्यां श्रान्तमुनेनिधापनतया धर्मस्तदा गर्दभा-, रोहेरप्यनगारिणां समुचितात् तुल्यं भवेत् तद् द्वयम् । त्यागं कारयतु ह्यसंमवतां दानस्य भिक्षुस्तकमाक्षीत् किमसद्धियाऽशुभधिया वाऽऽकर्ण्य स ब्रीडवान् ।। (क) किसी ने पूछा- जंगल में कोई साधु थक गया । सहज भाव से कोई बैलगाड़ी आ रही थी । उस बैलगाड़ी पर साधु को बिठाकर गांव में लाया गया, उससे क्या हुआ ? स्वामीजी बोले- बैलगाड़ी नहीं, किन्तु सवारी के गधे आ रहे थे । उन पर बिठा साधु को गांव में लाया गया, तब उसकी क्या हुआ ? तब वह बोला - गधे की बात क्यों करते हैं ? तब स्वामीजी बोले -- तुम बैलगाड़ी में बिठाकर लाने में धर्म कहते 4
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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