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________________ पञ्चदशः सर्गः १२७ कुछ व्यक्ति कुमतियों के द्वारा इस तरह से बहका दिए जाते हैं कि वे समझाए जाने पर भी अपने कदाग्रह को छोड़कर सन्मार्ग में नहीं आते । इस पर स्वामीजी ने अन्धे भक्तों के पत्थरों का दृष्टांत दिया- .. - किसी मठ में दस-बारह सूरदासजी महाराज रहते थे। भक्तों की भेंट में आए हुए पैसों के द्वारा बाबों ने मोहरें इकट्ठी कर लीं। किसी के पास २०, किसी के पास ३०,४०,५०--ऐसे मोहरें इकट्ठी हो गई। प्रतिदिन मोहरें गिनते हुए बाबों को किन्हीं ठगों ने देख लिया और उन्हें हड़पने के लिए उनके मुंह में पानी भर आया। उन्होंने तीर्थयात्रियों का सांग बनाया। चार-पांच गाड़ियां तथा पूजा-पाठ की सामग्री व्यवस्थित रूप से साथ में ली एवं सूरदास महाराज वाले मठ में विश्राम लिया। संतों के दर्शन किए एवं अपने यहां महाप्रसाद लेने का आग्रह किया। भक्तों के मनुहार पर बाबों ने स्वीकृति दे दी। खीर-जलेबी का भोजन परोसा गया। भोजनोपरांत सब बाबों को एक-एक मोहर दक्षिणा में भेंट की गई एवं निवेदन किया गया कि हम सब लोग तीर्थयात्रा करने के लिए जा रहे हैं, यदि आप लोगों की भी तीर्थयात्रा करने की इच्छा हो तो हमारे साथ चलें। हमारे साथ में भोजन आदि की भी समुचित व्यवस्था है अतः आपको किसी भी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होगा और आप लोगों के साथ में होने से संत-दर्शन तो होते ही रहेंगे और साथ-साथ निरन्तर संत-समागम का सुअवसर भी प्राप्त होता रहेगा। . भक्तों की इस विनम्र प्रार्थना से सूरदास बाबों का दिल द्रवित हो गया। तीर्थों की पावन यात्रा, मधुर व स्वादु भोजन एवं भोजनोपरान्त निरंतर दक्षिणा । सारे बावा लोग तैयार हो गए और साथ में मोहरों वाली नोलियां भी ले लीं। ठगों ने जब देखा कि मोहरें बाबों के साथ में हैं तो उनके दिल खुशी से उछलने लगे और वे बाबों को साथ ले वहां से रवाना हो गए। बीस-तीस कोस की मंजिल तय हो जाने के बाद एक पहाड़ की चढ़ाई सामने आ गई। ठग भक्तों ने कहा-'सूरदासजी महाराज ! यहां से दो रास्ते हैं-एक घुमावदार रास्ता है और दूसरा ऊंची चढ़ाई वाला सीधा। गाडियां, सारा सामान एवं सशस्त्र पहरेदार तो घुमाव वाले मार्ग से जायेंगे और खाली आदमी सीधे रास्ते से जायेंगे। अतः आपको भी सीधे रास्ते से चलना पड़ेगा। बस, बात इतनी-सी है कि जोखिम की चीज आप पास में बिल्कुल मत रखना । क्योंकि पहाड़ी मार्ग में चोर-लुटेरों का भय तो बना ही रहता है। ऐसा सुन बाबों ने कुछ चिन्तन-मनन के बाद अपनी सारी नोलियां वगैरह गाडियों में रख दी एवं आश्वस्त होकर पहाड़ी मार्ग में चलने लगे। कुछ दूर चलने पर ठग-भक्तों ने कहा-सूरदासजी महाराज! आगे मार्ग में आपको गुमराह करने वाले धूर्त लोग बहुत मिलेंगे, उनकी आप एक भी मत
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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