SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ श्रीभिक्षु महाकाव्यम् अशुद्ध हैं, अपवित्र हैं, उनकी शुद्धि कैसे हो सकती है ? इसी प्रकार जिन्हें सही तत्त्व प्राप्त नहीं है तथा जो सम्यक्त्व से विकल हैं, उनकी कैसी शुद्धि ? पूरा कथानक इस प्रकार है एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ परदेश गया। वहां ब्राह्मण ने बहुत धन कमाया । कुछ समय बाद ब्राह्मण मर गया। तब ब्राह्मणी एक पठान के घर में चली गई । उसके दो पुत्र हुए। एक का नाम रखा गाजीखां और दूसरे का नाम रखा मुल्लाखां । कुछ समय बाद वह पठान भी मर गया । तब ब्राह्मणी धन और पुत्रों को ले अपने देश लौट आई। उसके धन को देखकर सगे-सम्बन्धी इकट्ठे हुए। ब्राह्मणी ने अपने लड़कों को यज्ञोपवीत दिलाने के लिए भोज का आयोजन किया और बहुत ब्राह्मणों को भोजन करवाया । यज्ञोपवीत के समय उसने अपने पुत्रों को पुकारा - 'आओ बेटे गाजीखां ! आओ बेटे मुल्लाखां !' ये नाम सुनकर ब्राह्मण कुपित होकर बोले-अरे! ये क्या नाम ? ब्राह्मणों के नाम ऐसे नहीं होते । गाजीखां, मुल्लाखां तो मुसलमानों के नाम हैं। वे रोष में आकर बोले- सच बता, ये किसके पुत्र हैं ? यदि सच नहीं बताया तो तुम्हें मारेंगे और हम भी मरेंगे। तब वह बोली - मारो मत ! मैं सच-सच बता देती हूं। तब उसने सारी बात उन्हें बता दी और कहा- ये पठान से उत्पन्न हुए हैं। तब ब्राह्मण बोले- हे पापिनी ! तुमने हमें भ्रष्ट कर दिया । अब हम गंगाजी में नहा, उसकी मिट्टी का लेप कर शुद्ध होंगे । तब वह बोली- 'भाई ! इन दोनों बच्चों को भी साथ ले जाओ और शुद्ध कर दो। लौटने पर मैं तुम सबको ब्रह्मभोज दूंगी।' तब ब्राह्मण बोले- 'ये तो पठान से उत्पन्न होने के कारण मूलतः अशुद्ध हैं। हम तो मूलतः शुद्ध हैं । तुम्हारा अन्न खाया इसीलिए होंगे । पर ये मूलतः अशुद्ध हैं, फिर इनकी शुद्धि कैसी ? ' ये शुद्ध कैसे होंगे ? तीर्थयात्रा कर शुद्ध भीखणजी स्वामी ने कहा- किसी साधु को दोष लगता है तो वह प्रायश्चित्त कर शुद्ध हो जाता है । पर जो मूल से ही मिथ्यादृष्टि हों, जिनकी श्रद्धा विपरीत हो वे गाजीखां और मुल्लाखां के साथी हैं। वे शुद्ध कैसे होंगे ?" ६४. भोज्यैः स्वर्णसमर्पणैश्च कुहकैरन्धप्रभक्ताः समं, नीता ग्राहितलोष्टव: स्वभिहितास्त्याज्या न कंस्त्याजिताः । ते दूगं प्रति योजिता जहति नो निघ्नन्ति तर्वारकान्, स्तर्कान् कुमतापितान् कति तथा मुञ्चन्ति नो बोधिताः ॥ १. भिदृ० ११५ ।
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy