________________
प्रथम अध्याय / 15 घन, सुषिर, तत, आनद्ध ये चार प्रकार के बाजे बड़े वेग से बजने लगे जिनमें तत वद्य की ध्वनि के साथ आनद्ध नामक वाद्य उपरिमित ध्वनि करने लगा ।
। उक्त समय में स्वयं बजते हुए दुन्दुभि वाद्य ने राज भवन में भूतल को नये अङ्करों से युक्त कर सरस कर दिया (जैसे मेघ पृथ्वी को जल से अङ्कुरित कर देता है)।
भेरी बाजे की गम्भीर ध्वनि के भय से मानो वह वीणा भी शीघ्र छिपने के लिये किसी तरुणी के विशाल वक्षस्थल में जा पहुँची ।
भेरी बाजे की गम्भीर ध्वनि जब होने लगी तो वीणा भी अपनी मधुर ध्वनि से विभूषित हुई। साथ ही आनन्द तल को फैलाता हुआ झर-झर (झाँझ) बाजा भी बजने लगा । तरुणी के वक्षस्थल पर अनुराग से वीणा के दण्ड को देख वेणु ने ईर्ष्यावश तुरन्त किसी दूसरी युवती के अधर का चुम्बन कर लिया अर्थात् वह बाँस की बनी हुई वंशी बजाने लगी।
उत्तम कुल में उत्पन्न छोटा भी वेण वाद्य यद्यपि तरुणी के हाथ में ससम्मान रहा फिर भी क्या वह छिद्रों (दोषों) से युक्त नहीं है । इस प्रकार मन्द हास्य करता हुडुक बाजा भी बजने लगा।
इसी प्रकार अन्य वाद्यों के वर्णन भी किये गये हैं । ऐसे वर्णन कवि के संगीत-वाद्यप्रेम को तो व्यक्त करते ही हैं, उसके एतद्विषयक ज्ञान के भी परिचायक हैं। कवि का सैन्य परिचयः
महाकाव्य में युद्ध के अवसर पर अनेक प्रकार की सेनाओं की रचना का वर्णन मिलता है जो कविगत सेना रचना की दक्षता का परिचायक है। जैसे सप्तम सर्ग के श्लोक संख्या पन्द्रह में व्युह रचना का वर्णन किया गया है । यथा
"सम्राजस्तुक् खलु चक्राभं बलवासं मकराकारं रचयन् श्रीपद्माधीट् च। रणभूमावभ्रे चं खगस्तार्क्ष्यप्रायं यत्रं संग्रामकरं स्माञ्चति च प्रायः॥"
(ज.म. 7/115) यहाँ अर्ककीर्ति द्वारा अपनी सेना के व्यूहन तथा जयकुमार द्वारा अपनी सेना के मकर व्यूह और यहाँ विद्याधरों द्वारा सेना के गरुडव्यूह के ऊपर में प्रस्तुत करने का वर्णन किया है । ऐसे वर्णन कविगत सैन्य परिचय के परिचायक होते हैं। कवि का दर्शन ज्ञानः ____ जयोदय महाकाव्य के एकादश सर्ग श्लोक संख्या पंचानवें में अद्वैत दर्शन 'एकमेवास्ती ह ना नास्ति किंचन' इत्यादि अद्वैत की ओर संकेत किया गया है जो सुलोचना के अनुपम वाणी वर्णन के प्रसङ्ग में कहा गया है। यथा
"अद्वैतवाग्यद्विजराजतश्चाधिकप्रभाव्यास्यमदोऽस्त्यपश्चात् । दिदेश वाणान्मदनस्य शुद्ध्या पिकद्विजीऽभ्यस्यतु तान्सुवुद्धयाः ॥'23