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जयोदय महाकाव्य में प्रस्तुत स्थान /220. महाधिकार का नाम करणानुयोग है। इसमें तीनों लोकों का वर्णन उस प्रकार लिखा होता है जिस प्रकार किसी ताम्र पत्र पर किसी की वंशावली लिखी होती है । जिनेन्द्र देव ने तीसरे महाधिकार को चरणानुयोग बतलाया है । इसमें मुनि और श्रावकों के चारित्र की शद्धि का निरुपण होता है । चौथा महाधिकार द्रव्यानुयोग है । इसमें प्रमाणनय निक्षेप तथा सत्संख्या क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव, अल्पबहुत्व, निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति, विधान आदि के द्वारा द्रव्यों का निर्णय किया जाता है । मोक्ष :
___ आत्मा का कर्मों से सर्वथा सम्बन्ध छूट जाना मोक्ष कहलाता है। त्रिवर्ग :
धर्म, अर्थ, काम इन तीनों को त्रिवर्ग कहा गया है । दर्शन : ____ पदार्थों का अनाकार - निर्विकल्प जानना दर्शन है । केवल्य :
संसार के समस्त पदार्थों को एक साथ जानने वाला ज्ञान । गणधर :
तीर्थंकरों के समवसरण में रहने वाले विशिष्ट मुनि । ये चार ज्ञान के धारक होते हैं। चक्रवर्तीः
चक्ररत्न का स्वामी राजाधिराज, ये बारह होते हैं तथा भरत ऐरावत और विदेह क्षेत्र के छह खण्डों के स्वामी होते हैं । द्वादश भावना :
इसका सर्वत्र उल्लेख है । अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्व, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म इनको द्वादश भावना यानी बारह भावना कहा गया
सामायिक :
चारित्रय का एक भेद जिसका सामान्य रूप समस्त पापों का त्याग कर समताभाव धारण करना अर्थ है”। अष्टाविंशतिमूलगुण :
मुनियों के मूलगुण अट्ठाईस होते हैं । पाँचमहाव्रत, पाँच समितियाँ, पाँच इन्द्रियदमन, वस्त्र परित्याग, केशों का लोंच करना, छह आवश्यकताओं में कभी बाधा नहीं होना, स्नान