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226 / जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन
मतिज्ञान - जो पंचइन्द्रियों और मन की सहायता से पदार्थ को जाने उसे मति ज्ञान कहते हैं ।
श्रुतज्ञान - पाँच इन्द्रियों और मन की सहायता से मतिज्ञान के द्वारा जाने हुए पदार्थ को जिससे विशेष रूप से जाना जाता है, उसे श्रुतज्ञान कहते हैं ।
अवधिज्ञान : अवधि का शब्दार्थ है कि अव समन्तात् द्रव्यादिभिः परिमितत्वेन धीयते विषयो अनेनेतिअवधिः । अथवा द्रव्यक्षेत्रकालभावैः अवधीयतेपरिच्छिद्यते विषयो अनेनेति अवधिः। अवधि ज्ञान से विषयों का यह इतना ऐसा है द्रव्यकाल स्थानादि का बोध हो जाता है इसी को नैयायिक लोग सविकल्पक ज्ञान कहते हैं । इस ज्ञान के द्वारा देव नीचे स्थिति सप्त नरकादि लोकों को देख लेते हैं परन्तु अपने ऊपर विमान के दण्ड पर्यन्त मात्र को ही देखते हैं। अभयङ्कर ने कहा है- " अधस्तात् बहुतर विषय ग्रहणात् अवधिः । ' 8 इति । अवधिज्ञान का वर्णन करते हुए तत्त्वार्थ सूत्र में कहा है " भवप्रत्ययोऽवधि र्देवनारकाणाम् ।"
अवधिज्ञान के भेद
भव प्रत्यय
(क)
अवधि ज्ञान
अनुगामी - अननुगामी वर्धमान हीयमान
क्षेत्रानुगामी भवानुगामी उभयानुगामी
गुण प्रत्यय
अवस्थित अनवस्थित
क्षेत्रानुगामी भवाननुगामी उभयाननुगामी
(ख)
अवधि ज्ञान
परमावधि
सर्वावधि
देशावधि अवधि ज्ञान का रूप तत्त्वार्थ सूत्र सटीक में इस प्रकार
है I
मनः पर्ययज्ञान : ज्ञान के आवरण के रूप में जो ईर्ष्या आदि विघ्न होते हैं उनका क्षय अथवा उपशम हो जाने पर दूसरे व्यक्तियों के मनोगत वस्तु को 'इदमित्थम् ' ( यह इतना ऐसा है) इस ज्ञान को मनः पर्याय कहते हैं ।