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204 / जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन
इसी प्रकार तृतीय सर्ग में महाकविनेरथोद्धता, अनुष्टुप, उपजाति, वसन्ततिलक, उपेन्द्रवज्रा, शार्दूलविक्रीडित प्रभृति छन्दों से वर्णन कर शार्दूलविक्रीडित द्वारा सर्ग की समाप्ति कर दी है । इस सर्ग में आये हुए सभी छन्दों का वर्णन ऊपर कर दिया गया है । अतः इनकी पुनरावृत्ति की कोई आवश्यकता नहीं।
चतुर्थ सर्ग में आये हुए छन्दों का विवेचन इस प्रकार है - स्वागता :
जिस छन्द के एक पाद में क्रमशः रगण, नगण, भगण और दो गुरु होते हैं, उसे 'स्वागता' छन्द कहते हैं । वृत्तरत्नाकार के तृतीय अध्याय के श्लोक उन्तालिस में भी यही लक्षण दिया गया है । इस वृत्त का प्रयोग महाकवि ने चतुर्थ सर्ग के प्रारम्भ से लेकर पैंसठ श्लोक पर्यन्त किया है, जिसमें एक उदाहरण प्रस्तुत है -
"यावदागमयतेऽथ नरेन्द्रान् काशिकानरपतिर्निजकेन्द्रात । - आदिराज इदमाह सुरम्पर्क कीर्तिमचिरादुपगम्य ॥'51
पंचम सर्ग में भी प्रथम श्लोक से लेकर बहत्तर श्लोक पर्यन्त स्वागता छन्द है । पुनः आगे के श्लोक से छन्द बदल गया है जो द्रष्टव्य है - तामरस :
जिस छन्द के एक पाद में क्रमशः नगण, दो जगण और यगण होते हैं, उसे तामरस कहते हैं । यथा -
"युवमनसीति वितर्क विधात्री सुकृतमहामहिमोदयपात्री । सदसमवाप मनोहरगात्री परिणतिमेति यया खलु धात्री ॥''53
इस सर्ग के नब्बे श्लोक पर्यन्त उक्त वर्णित छन्दों का ही प्रयोग हुआ है अतः उनका पुनः वर्णन अपेक्षित नहीं। इन्द्रवंशा:
जिस छन्द के चारों चरण में दो तगण, एक जगण, एक रगण हो उसे इन्द्रवंशा छन्द कहते हैं । यथा -
"शूरा बुधा वा कवयो गिरीश्वराः सर्वेऽप्यमी मङ्गलतामभीप्सवः ।
कः सौम्यमूर्तिर्मम कौमुदाश्रयोऽस्मिन् सङ्गहे स्यात्तु शनैश्चराम्यहम् ॥"55 मत्तमयूर :
जिस छन्द के चारों चरणों में मगण, तगण, यगण, सगण एवं एक गुरु हो उसे मत्तममयूर छन्द कहते हैं । इस छन्द में चतुर्थ और नवम वर्ण पर यति होती है । इसका उदाहरण अवलोकनीय है -
"स्वङ्गी यूनां कामिकमोदामृतधारां यच्छन्ती यद्वद्विकलानां कमलारम् । बन्धूकोष्ठी नामिकमापालय गर्भ भव्यं स्वत यन्नवगौराजिरशोभम् ॥''57