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202 / जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन
इन्द्रवज्रा :
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यदि छन्द के प्रथम चरण में क्रमश: दो तगण एक जगण और दो गुरु हों तो उसे इन्द्रवज्रा वृत्त कहते हैं । यहाँ पाद में यति होता है। इसका एक उदाहरण द्रष्टव्य है - " होढ़ाकृतं घूतमथाह नेता संक्लेशितोऽस्मिन्विजितोऽपि जेता । नानाकु कर्माभिरुचिं समेति हे भव्य दूरादमुकं त्यजेति ॥ ३ इस वृत्त का प्रयोग अनन्तप्राय है ।
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भुजङ्गप्रयात :
जिस छन्द के चारों चरणों में चार यगण हों उसे भुजङ्गप्रयात छन्द कहते हैं । जैसे" त्रसानां तनुर्मांसनाम्ना प्रसिद्धा यदुक्तिश्च विज्ञेषु नित्यं निषिद्धा । सुशाकेषु सत्स्वप्यहो तं जिघांसुर्धिगेनं मनुष्यं परासृपिपासुम् ॥"36 वसन्ततिलक :
जिसमें तगण, भगण, जगण पुन: जगण और अन्त में दो गुरु हों, उस छन्द को 'वसन्ततिलक' कहते हैं । इस वृत्त से भरे हुये महाकाव्य में से एक पद्य 'स्थालीपुलाकि ' न्याय से कर रहा हूँ । यथा
प्रस्तुत
लोके
भङ्गा
धीभ्रंशनं
घृणां
तमाखु
समुपयन् मदक द्धिरस्मिन् सुलभादिभिरङ्ग वच्मि 1
परवशत्वमुपैति दैन्य न सोऽस्ति धन्यः
मस्मान्मदित्वमुपयाति
इसी सर्ग के अग्रिम श्लोक में स्रग्विणी छन्द द्रष्टव्य है -
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स्रग्विणी :
जिसके एक पाद में चार रगण हों, उसे स्रग्विणी छन्द कहते हैं । जैसे "माक्षिकं मक्षिकाव्रातघातोत्थितं तत्कुलक्लेदसम्भारधारान्वितम । पीडयित्वाऽप्यकारुण्यमानीयते सांशिभिर्वंशिभिः किन्नु तत्पीयते ॥ "
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सुन्दरी :
यदि प्रथम तथा तृतीय पाद में दो सगण एक जगण और एक गुरु हों तथा द्वितीय और चतुर्थ पाद में सगण, भगण, रगण तथा एक लघु और एक गुरु हों, तो 'सुन्दरी' नामक छन्द होता है" । कुछ लोग इसे वियोगिनी नाम से स्मरण करते हैं । इसका एक उदाहरण द्रष्टव्य है । यथा