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________________ 172 / जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन के लिये ब्रह्मा ने जो पहले परम प्रयास किया, उस ब्रह्मा की चेष्टा के लिये प्रणाम है । क्योंकि स्त्री मात्र सृष्टि में यही सबसे महिमाशालिनी प्रतीत होती है । इसीलिये चरणसम्पति से ही गौरवशालिनी है । I यहाँ ब्रह्मा का प्रयास सर्ग रूप चतुर्थी के लिये है । अतः सम्प्रदानौचित्य का उदाहरण है । इसी प्रकार अन्य श्लोकों में भी यह औचित्य दर्शनीय है "करौ विधेस्तस्त्ववरौ धियापि सवेदनस्येयमहो कदापि । नमोऽस्त्वनङ्गाय रतेस्तु भर्त्रे स्मृत्यैव लोकोत्तररूपकर्त्रे ॥ 1149 इस श्लोक में सुलोचना के हाथों का वर्णन करते हुए यह कहा गया है कि स्वयं आविर्भूत ज्ञान ब्रह्मा की बुद्धि से दोनों श्रेष्ठ हाथों का निर्माण हुआ । कदाचित् काम भी स्मरण मात्र से अलौकिक रूप निर्माण करने में समर्थ है, ऐसे रतिपति अनंग को नमस्कार है । यहाँ अलौकिक रूप निर्माण करना स्मरण मात्र से ही दिखाया गया है, वह भी अंगहीन काम के अलौकिक वैभव का परिचायक है । अतएव यहाँ भी सम्प्रदानौचित्य है । (य) अपादानौचित्य योदय महाकाव्य में अपादानौचित्य भी रम्य रूप में दिखाया गया है । जिस समय जयकुमार की दृष्टि सुलोचना के शरीर पर पडी, उस समय का वर्णन महाकवि ने एकादश सर्ग में करते हुए इस प्रकार दिखाया है। "कालागुरोर्लेपनपङ्किलत्वाद् दृष्टिः स्खलन्तीव च सस्पृहत्वात् । तनौ चरिष्णुः सुदृशोऽप्यपूर्वा उरोरुहाभोगमगान्मुहुर्वा ॥ 150 - इस पद्य में कहा गया है कि जयकुमार की अपूर्व दृष्टि सुन्दरी सुलोचना के शरीर पर घुमती हुई वक्षस्थल भाग पर पहुँची जहाँ काले अगर का लेप किया गया था । उस स्थान आर्द्र होने से (करदम युक्त) फिसलती हुई भी वह दृष्टि उत्कण्ठा अधिक होने से बारम्बार वहीं पहुँची । इस श्लोक में कालागुरु के लेपन की पंकिलता होने से एवं उत्कण्ठा पूर्ण होने से बारम्बार एक ही स्थान पर पड़ना वह वक्षस्थल की रम्यता का परिचायक है । जिसमें पंचम्यन्त हेतु बनाकर सुदृढ़ता लायी गयी है, अतएव अपादानौचित्य मनोज्ञ है । (र) अधिकरणौचित्य : इस महाकाव्य में अधिकरणौचित्य का चमत्कार अनेक स्थलों में दिखाया गया है । अट्ठारहवें सर्ग में अनेक पद्य दर्शनीय हैं जैसे- 1151 " सूक्तिं प्रकुर्वति शकुन्तगणेर्हती युक्तिं प्रगच्छति च कोकयुगे सतीव । मुक्ति समिच्छति यतीन्द्रवदब्जबन्धे भुक्तिं गते सगुणवद्र जनीप्रबंधे ॥' इस पद्य में प्रभातकाल का वर्णन करते हुए यह कहा गया है कि जब अर्हत् की सुन्दर
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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