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पंचम अध्याय / 123
"सुभगा हि कृता यत्नद्विधिनाऽथ प्रियंवदः 1 दत्त्वा स्मरो विलासादि सुवर्ण सुरभीत्यदः
॥'
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प्रकृत पद्य में कुमारी सुलोचना को विधाता ने बड़े परिश्रम से अति सुन्दरी के रूप में बनाया । फिर मधुर भाषी कामदेव ने विलास आदि स्त्री विभ्रमों को अर्पण कर उसमें सुवर्ण सुगन्ध ला दिया । यद्यपि स्वर्ण में सुगन्ध नहीं होता, अपितु पुष्प में ही होता है । फिर भी कवि ने पुष्पगत सुगन्ध धर्म को स्वर्ण में लाकर सुलोचना को अत्यन्त श्लाघनीय करने के लिये ऐसा वर्णन किया है । अतएव तद्गुणालङ्कार समीचीन है ।
31. अतद्गुण : जहाँ पर अन्य गुण ग्रहण के कारण विद्यमान हो फिर भी गुण ग्रहण का अभाव प्रतीत होता हो अर्थात् अपनी सत्ता व्यवस्थित ही रह जाती हो वहाँ अतद्गुण अलङ्कार होता है 139 ।
अतद्गुण अलङ्कार यद्यपि इस महाकाव्य में अपेक्षया कम ही है । क्योंकि अनेक स्थलों में रम्य रूप में चित्रित है । जैसे
"रथमण्डलनिस्वनैः समं करिणां बृंहितमानिजुहूनुवे । पुनरत्र तुरङ्ग हेषितं
स्वतितारं
सुतरामराजते
।। ' '140 विशाल सेना के वर्णन प्रसङ्ग में कहा गया है कि रथ मण्डलों की ध्वनि के साथसाथ हाथियों की गर्जना सर्वत्र व्याप्त हो गयी अर्थात् मिश्रित ध्वनि से सब स्थल व्याप्त हो गये तो भी घोड़ों की वेग से भरी हुई हिनहिनाहट अत्यन्त सुशोभित हुई ।
यहाँ रथ- मण्डल की ध्वनि से हस्ति गर्जन का मिलना प्रत्येक स्थानों को व्याप्त करने के लिये वर्णन किया गया है । परन्तु उनमें घोड़ों की ध्वनि इतनी गम्भीर थी कि अपनी स्वरूप सत्ता को ही हिनहिनाहट से व्याप्त कर रही थी । अतएव यहाँ अतद्गुणालङ्कार है । क्योंकि ध्वनियों के मिश्रण होने का वर्णन किया गया है । परन्तु वह मिश्रण ध्वनि घोड़ों की ध्वनि को मिलाने में समर्थ नहीं है । अतः अतद्गुण अलङ्कार परिपुष्ट हैं ।
शब्दालङ्कार
32. वक्रोक्ति : जहाँ पर अन्य का कहा हुआ वाक्य दूसरे के द्वारा अन्यार्थ परक कर दिया जाय वहाँ वक्रोक्ति अलङ्कार होता है । वह अन्यार्थ परता श्लेष 'मूलक अथवा काकुमूलक होने से दो प्रकार का होता है 141 । निम्नस्थ श्लोक इस अलङ्कार के उदाहरण रूप में विचारणीय है
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' मानिनोऽपि मनुजास्तनुजायामागता रसवशेन सभायाम् । जायते सपदि तत्र किमूहः स्वागतः खलु विमानिसमूहः ॥ 142 प्रकृत श्लोक में वर्णन है कि सुलोचना के स्वयंवर में अनेकों व्यक्तियों का आगमन