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पंचम अध्याय / 121
26. परिवृत्ति : पदार्थों का समान या असमान पदार्थों के साथ जो परिवर्तन का वर्णन है, यह परिवृत्ति अलङ्कार होता है 28 । आचार्य विश्वनाथ ने भी इसका लक्षण साहित्य दर्पण में दिया है । जिसका आशय है कि समान और असमान वस्तु का अथवा न्यून से अधिक या अधिक से न्यून वस्तु के विनिमय में परिवृत्ति अलङ्कार होता है 29 । उदाहरण द्रष्टव्य है
"हारं
जयः
हृदोऽनुकूलं स समवाप्य महाशयः
समादरात्तस्मा
युपहारं
वितीर्णवान्
यहाँ कहा गया है कि जयकुमार को हृदयानुकूल हार प्राप्त हुआ जिसे प्राप्तकर उदारचित्त इस राजकुमार ने लाये हुए दूत को अत्यन्त आदर के साथ उपहार ( पारितोषिक ) प्रदान किया। हार को पाकर उपहार देना यद्यपि हार में दो अक्षर हैं और उपहार में चार अक्षर हैं प्राप्त की अपेक्षा अधिक प्रदान कर जयकुमार के माध्यम से अधिक प्रदान कराकर परिवृत्ति अलङ्कार व्यक्त किया गया है ।
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27. अर्थापत्ति : आचार्य विश्वनाथ ने साहित्यदर्पण में इस प्रकार कहा है कि जो दण्ड को खा सकता है, वह अपूप भी खा सकता है। कहीं पर प्राकरणिक अर्थ से अप्राकरणिक अर्थ की प्राप्ति और कहीं अप्राकरणिक अर्थ से प्राकरणिक अर्थ का उपस्थित होना अर्थापत्ति अलङ्कार बन जाता है 131 । जैसे 'मुक्तानामप्यस्थेयं के वयं रूपरकिङ्कराः ।' अर्थात् मुक्तों की भी ये स्थिति हो जाती है । कामदेव के दूत हम लोगों की क्या बात है ? अर्थापत्ति से भी यह महाकाव्य रिक्त नहीं है । इसके भी यत्र-तत्र प्रयोग मिलते हैं । जैसे -
'मतङ्गजानां गुरुगर्जितेन जातं प्रहृष्यद्धयगर्जितेन । अथो रथानामपि चीत्कृतेन छन्नः प्रणादः पटहस्य केन ॥ ''132
युद्धस्थल में यद्यपि हाथियों की भयंकर गर्जना होती थी, घोड़ों की हिनहिनाहट भी हो रही थी रथों का चीत्कार भी हो रहा था तथापि पटः (नगाड़े) की ध्वनि को कौन छिपा सका ? अर्थात् नगाड़े की ध्वनि जो युद्धकाल में शौर्योत्पादन हेतु बजाया जाता है, उसे कोई भी नहीं छिपा सका
श्लोकगत 'पट:' की ध्वनि को किसने छिपा लिया ? अर्थात् कोई भी नहीं छिपा सका। इस श्लोक में सम्पूर्ण चारुता अर्थापत्ति पर ही अवलम्बित है ।
28. समुच्चयालङ्कार : जहाँ प्रस्तुत पदार्थ के लिये कारण दिखाया जाय और वे कारण “खलेकपोतिका न्याय” से बताये जाँय तो वहाँ समुच्चयालङ्कार होता है 33 । तात्पर्य यह है कि जहाँ धान्यादि फसल की बेल आदि के द्वारा धान्य राशि निकालने के लिये दौरी कर सुखाया जाता है वहाँ कपोतों का झुण्ड एक ही साथ खाने के उद्देश्य से पहुँच