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________________ 104/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन यहाँ पर एक ही उठी हुई धूलि के सम्बन्ध में आकाश गंगा में पंकरूप से चन्द्र में कलङ्करूप एवं इन्द्र के गज मस्तक पर मदरूप से दिखायी गयी है । इसलिये एक ही वस्तु के सम्बन्ध में बहुधा उल्लेख होने से उल्लेखालङ्कार है । 8. अपहृति : अपहृति अलङ्कार का इस महाकाव्य में बहुशः प्रयोग किया गया है । इसका लक्षण साहित्य दर्पण दंशम परिच्छेद के अड़तीस एवं उन्नतालिस के पूर्वार्ध से इस प्रकार व्यक्त किया गया है । जहाँ उपमेय का निषेध कर शब्द अथवा अर्थ से असत्यता दिखाकर उपमान की सत्यता स्थित की जाय वहाँ अपह्नति अलङ्कार होता है । गोपनीय वस्तु को किसी प्रयोजन वश किसी प्रकार से (व्यंजनादि के द्वारा) श्लेष अथवा अन्य प्रकार से अन्यथा बताया जाय वहाँ अपहृति अलङ्कार होता है। इसका मंजुल निदर्शन अवलोकनीय है - "द्विपवृन्दपदाद्दिगम्बर सघनीभूय वने चरत्ययम् । निकटे विकटेऽत्र भो विभो ननु भानोरपि निर्भयस्त्वयम् ॥''62 प्रकृत श्लोक में जयकुमार से एक व्यक्ति कह रहा है कि यह दिगम्बर (अन्धकार) गजमण्डल के ब्याज से एकत्रित होकर इस भयङ्कर वन में निर्भय होकर सूर्य के समीप भी विचरण कर रहा है अर्थात् दिन में भी सघन अन्धकार दिख रहा है । यहाँ पर सूर्य के प्रकाश के सामने अन्धकार का ठहरना सम्भव नहीं है । परन्तु काले गज मण्डल की पंक्ति होने से अन्धकार की प्रतीति एवं उसे निर्भय होने का वर्णन किया गया है । यहाँ दिन में भी अन्धकार बना रहता है । इस अर्थ को व्यक्त करने के लिये सूर्य से निर्भय है ऐसा कहा गया है । इस अलङ्कार में भी छल कपट ब्याज आदि शब्द प्रयुक्त होते हैं । अथवा इनके अर्थ के भान से भी यह अलङ्कार निष्पन्न होता है । अतएव कै तवापह्नति अलङ्कार है क्योंकि हाथियों के ब्याज से घनान्धकार एकत्रित है जो विचरण कर रहा है। ऐसे ही इसी सर्ग के अग्रिम में भी अपह्नति अलङ्कार का रम्य निरूपण है - "आजिपतिप्राणतमस्तके ऽश्वे नासासमीरोत्थरजश् छ लेन । तदीय संसर्गसुखोत्सुकाया बभूव सद्यः स्फुरणं धरायाः ॥"63 अर्थात् मस्तक को झुकाकर घोड़ो ने पृथ्वी को सूंघा उस समय नासिका की हवा के ऊपर की ओर उठी हुई धूलि के ब्याज से घोड़ों के सांसर्गिक सुख, सुख में उत्कण्ठित हुई पृथ्वी को रोमांच हो गया । ऐसा प्रतीत हुआ यहाँ पर नासिका से निकली हुई वायु के सम्पर्क से पृथ्वी से धूल ऊपर को उठ पड़ी । उसी धूल के ब्याज से पृथ्वी रोमांच का वर्णन किया गया है। रोमांच में शरीर के रोम खड़े हो जाते हैं ।
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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