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100/ जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन
(द) 'अमुकस्य सुवर्गमागता नृपदूताः स्म लसन्ति तावता । पुलकावलिफुल्लिताननास्तटलग्ना इव वारिधेर्धनाः ॥
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उपमा सादृश्य मूलक भेद प्रधान अलङ्कार है" । अब भेदाभेद प्रधान अनन्वय का उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है
2. अनन्वयः महाकाव्य में यह अलङ्कार अनेक स्थलों में दिखाया गया है । यद्यपि अन्य अलङ्कारों जैसे उपमा, रूपक, श्लेष आदि की भाँति इसका व्यापक प्रयोग नहीं मिलता है फिर भी इसकी न्युनता नहीं है । अनन्वय का लक्षण साहित्यदर्पण में आचार्य विश्वनाथ ने दशम परिच्छेद के छत्तीसवें के उत्तरार्ध में व्यक्त किया है कि जहाँ एक ही वस्तु को अद्वितीय चमत्कार लाने के लिये उपमान एवं उपमेय दोनों बना दिये जाते हैं, वहाँ अनन्वय अलङ्कार होता है । इस बात को दृष्टि में रखते हुए जयोदय महाकाव्य के - एक उदाहरण को प्रस्तुत किया जा रहा है
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' तवापि भूमावापि रूपराशावाशाधिकर्यो बहुलास्तु तासाम् । का सावरम्या स्मरसारवास्तु सुरोचना नाम सुरोचनाऽस्तु ।।
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यहाँ सुलोचना का वर्णन करते हुए 'ल' और 'र' में तथा 'व' और 'ब', 'ड' और 'ल' में प्रभेद होने की दृष्टि से 'र' और 'ल' में अभेद मानकर प्रकृत पद्य में सुलोचना को सुरोचना कहा गया है । हे राजन् ! सौन्दर्य समुद्र में आशाधिकारणी बहुत सी स्त्रियाँ इस भू-मण्डल पर आपके लिये हैं । परन्तु कौन ऐसी है जो आपके लिए रमणीय न हो । अपितु सब काम चेष्टाओं से पूर्ण होने के कारण रम्य हैं । फिर भी काशी नरेश अकम्पन की पुत्री 'सुलोचना' तो 'सुलोचना' ही है । अर्थात् उसके सादृश्य में कोई नहीं है । इवादि का प्रयोग न होने से यह वाच्य नहीं है ।
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इस प्रकार अनन्वयालङ्कार का कलेवर रम्य दिखाया गया है ।
3. स्मरणालङ्कार : इस अलङ्कार का लक्षण साहित्यदर्पण दशम परिच्छेद के श्लोक सत्ताईस के उत्तरार्ध में दिया गया है । सदृश गुणवश प्रत्यक्ष वस्तु को देखने से पुर्वानुभूत वस्तु का होने पर स्मरणालङ्कार होता है । परन्तु यह स्मरण कवि प्रतिभोस्थापित होना चाहिए। लोक व्यवहार प्रयुक्त मात्र से यह अलङ्कार नहीं हो सकता । जैसे- 'तदेवेद कार्षापणम्' यह वही रुपया है । इसका एक सुन्दर दृष्टान्त द्रष्टव्य है
पिपासुरश्वः प्रतिमावतारं निजीयमम्भस्यमलेऽवलोक्य । स सम्प्रति स्म स्मरति प्रियाया द्रुतं विसस्मार पिपासितायाः || 2 148
4. रूपक: रूपकालङ्कार की योजना महाकवि ने प्रायः प्रत्येक सर्ग में सुस्पष्ट एवं समीचीन रूप में दिखायी है । जहाँ उपमेय का निषेध न कर उपमान के साथ सादृश्यातिशय के प्रभाव से तादात्मय दिखाया जाता है । उपमान- उपमेय में अभेदारोप किया जाता हो
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