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________________ जयोदय महाकाव्य में अलङ्कार निवेश वाणीभूषण ब्रह्मचारी भूरामल शास्त्री विरचित 'जयोदय महाकाव्य' में अलङ्कारों का निर्देश करने से पूर्व अलङ्कार एवं अलंकार्थ के स्वरूप आदि का विवेचन अपेक्षित है अत: उसका संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत करेंगे। भूषणार्थक 'अलम्' पूर्वक 'कृ' धातु से करण या भाव में 'घ' प्रत्यय से निष्पन्न यह. अलङ्कार शब्द सजावट, शृङ्गार, आभूषण, साहित्य शास्त्र का एक अङ्ग काव्य का गुण-दोष विवेचक शास्त्र आदि बहुअर्थी में व्यवहत है' । वेद, वेदाङ्ग आदि में शतशः प्रयुक्त 'अलङ्कार' शब्द के आधार पर निःसन्देह कहा जा सकता है कि वेदाब्धि ही इसका स्रोत है। जहाँ से प्रेरणा प्राप्त कर काव्य शास्त्रीय आचार्यों ने इसका प्रतिपादन किया है। वेदों में अरंकृत, अरंकृति जैसे शब्दों का प्रयोग प्राप्त होता है - "वायवायाहि दर्शतमेसोमा तस्कृताः।" ऋवे. 1/2/1 "त्वमग्ने द्रविणोदा अरंकृते।" ऋवे.2/1/7 "का ते अस्त्यरंकृतिः सक्तेः।" ऋ.वे.7/29/3 "आदित्यानामरंकृते।" ऋ.वे.8/7/3 यहाँ आचार्य सायण ने 'अरंकृताः' का 'अलंकृताः', 'अरंकृते' का 'अलंकृते' तथा 'अरंकृति' का 'अलंकृतिः' अर्थ किया है, जो अलंकार के ही वाचक हैं । इस प्रकार ऋग्वेदीय यह 'अरंकृत' शब्द ब्राह्मण ग्रन्थों में 'अलंकृत' पश्चात् अंलकार के रूप में प्रयुक्त हुआ । 'अञ्जनाभ्यञ्जनेप्रयच्छत्येव ह मानुषोऽलंकारः" वसनेन अलंकारेणेति संस्कुर्वन्तिसाध्वलंकृतौ सुवसना परिष्कृतौ' इन विविध प्रयुक्त प्रयोगों से प्रतीत होता है कि 'शतपथ ब्राह्मण', 'छान्दोग्योपनिषद्' ग्रन्थों में भी अलंकार शब्द का बहुलता से प्रयोग हुआ है । निरुक्तकार ने सीमा अरंकृताः, अलंकृताः' जैसे स्थलों में अलंकृत' शब्द का अरंकृत' शब्द के पर्याय में ग्रहण किया है । 'अलंकरिष्णु' शब्द की सिद्धि के लिये आचार्य पाणिनि ने 'अलंकृञ, निराकृणः' इत्यादि का समावेश अपने सूत्र में किया है । रामायण, महाभारत' जैसे ग्रन्थों में भी 'अलंकार' शब्द के सुस्पष्ट प्रयोग एवं उदाहरण प्राप्त होते हैं। प्राचीनकाल में यह 'अलङ्कार' शब्द सम्पूर्ण साहित्य शास्त्र या काव्य शास्त्र के लिये प्रयुक्त होता था । आचार्य राजशेखर ने काव्यशास्त्र को सातवाँ वेदाङ्ग तथा पन्द्रहवाँ विद्यास्थान बताया है। ___'अलंकृतिरलंकारः' अथवा 'अलंक्रियतेऽनेन' व्युत्पत्ति से निष्पन्न अलङ्कार शब्द सौन्दर्य या शोभाधायक है । यह सौन्दर्य दोषों के त्याग एवम् गुणालङ्कारादि के ग्रहण आदि से सम्पादित
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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