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________________ (27) हैं कि जैन धर्म दान, दया का विरोधी है। वे जैन धर्म को बुरा मानते हैं। परन्तु उनको यह ज्ञाम नहीं है कि जैन धर्म दान दया का विरोधी नहीं है।। वाम दया के विरोधी तो केवल श्वे. तेरहपंथी हैं। समस्त जैन नहीं। जैन धर्म तो स्पष्ट कहता है कि"सव्व जग जीव रवखण दयट्टयाए पाक्यणं भगवया सुकहियो।” (प्रश्म व्याकरण) इसका अर्थ यह है कि संसार में जितने भी प्राणी निवास करते हैं उनकी रक्षा के लिए भगवान ने जैन आगम का वर्णन किया है। प्राणियों की रक्षा ही उनकी दया है। इस पाठ से स्पष्ट सिद्ध होता है कि जैमागम के निर्माण का उद्देश्य ही प्राणियों की रक्षा या दया करमा है। जिसका उद्देश्य प्राणियों की रक्षा करना है यह दया का विरोधी हो यह कैसे हो सकता है? अतः जैनागम रक्षा य्या दया का विरोधी नहीं है। यह तो इस बाप्तरसे साष्ट सिद्ध होता है। तथापि जिसको 'प्रबल व्यामोह है अथवा जो आपने मत पक्ष के दुराग्रह में बंध गया है यह किस प्रकार इस बात कोम्मान सकता है। यद्यपि इस पाठ में रक्षा का विधाम स्पष्ट है तापि तेरहपंथी भोलीभाली जमता को अपने पक्ष में कायम रखने के लिये कहते हैं कि"प्राणियों को स्कायं मम्मासमा उमकी रक्षा या नट्या कहलाती है, मरते प्राणी को सम्ममा रक्षाय्या त्ययान्महीं है।। मेरेले जीवों को शब्दार्थ कमा पूर्ण झाम तो होता नहीं। इसके भुलम्चे में मा जाते हैं। पास्तु दिसामपुस्मिाकोशावर्थकमाकुछझम्मलो कोझोम्मस्यामसमें कपिनहीं फरसस्ते।कोमछीत्सरह इस
SR No.006168
Book TitleSupatra Kupatra Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherAadinath Jain S M Sangh
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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