________________ (सभी सयाने एक मत भगवती सूत्र के प्रारम्भ में “णमो बंभीए लिवीए" ऐसा कहकर सुधर्मास्वामी गणधर ने श्रुतज्ञान की स्थापना (मूर्ति) को नमस्कार किया है। केलवा की अंधारी ओरी में तेरापंथी आचार्य भारमलजी स्वामी की काष्ठ की खड़ी मूर्ति है। तुलसी साधना शिखर के प्रांगण में आचार्य श्री भारमलजी स्वामी की पाषाणमय चरण पादुकाएँ स्थापित हैं। रूण (जिला-नागौर) में स्व. युवाचार्य मिश्रीमलजी म. मधुकर की प्रेरणा से बनी हई स्व. हजारीमलजी म. की संगमरमर की बड़ी मूर्ति है। जैतारण के पास गिरिगांव में स्थानक के गोखड़े में स्था. मुनि श्री हर्षचन्द्रजी म. की मूर्ति है। जसोल (जिला-बाड़मेर) में तेरापंथी संत स्व. जीवणमलजी स्वामी की संगमरमर की मूर्ति है। जिंदा रहने के लिए प्राणवायु (ओक्सीझन) की तरह धर्म में मूर्तिपूजा की आवश्यकता व प्राचीनता को अब सभी ने स्वीकार किया है। तीर्थंकर ओघा मुहपत्ति नहीं रखते हैं। - समवायांग सूत्र गौतम स्वामी मुहपत्ति नहीं बांधते थे। -विपाक सूत्रे-दुःख विपाक विक्रम संवत् 1708 में लवजी स्वामी ने महपत्ति बांधने की नई प्रथा चलाई है। जिनके दर्शन से मिटे, जन्म-जन्म के पाप, जिनके पूजन से कटे, भव-भव के संताप, ऐसे श्री जिनराज को, वन्दो बारम्बार। युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी ने कहा - “मैं तो हमेशा जाता हूं मन्दिरों में / अनेक स्थलों पर प्रवचन भी किया है। आज भीनमाल में श्री पार्श्वनाथ मंदिर में गया / स्तुति गाई। बहत आनन्द आया।” - जैन भारती पृष्ठ 23 वर्ष 31 अंक 16-17, दि. 20-7-83 तेरापंथ अंक आपको भी जैन मन्दिरों में प्रतिदिन दर्शन-पूजन करके आनन्द लेना चाहिए। धन गया तो कुछ नहीं गया, चरित्र गया तो सब कुछ गया।