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श्री शान्तिनाथ भगवान का स्तवन
शान्ति जिनेश्वर साहेब वन्दो, अनुभव रसनो कन्दो रे । मुखने मटके लोचन लटके, मोह्या सुरनर वृन्दो रे, शांति. ॥ 1॥ आम्बे मंजरी कोयल टहुके, जलद घटा जिम मोरा रे । तेम जिनप्रतिमा निरखी हरखुं, वलि जेम चंद चकोरा रे । शान्ति. ।। 2।। जिन पडिमा श्री जिनवर सरखी, सूत्र घणा छे साखी रे । सुरनर मुनिवर वन्दन पूजा, करता शिव अभिलाषी रे । शान्ति ।। 3।। राय पसेणी मां पडिमा पूजी, सूर्याभ समकित धारी रे । जीवाभिगमे पडिमा पूजी, विजयदेव अधिकारी रे। शान्ति. ॥ 4॥ जिनवर बिंब विना नवि वन्दु, आणंदजी इम बोले रे । सातमे अंगे समकित मूले, अवर नहीं तस तोले रे । शान्ति. ॥ 5॥ ज्ञाता सूत्र मां दौपदी पूजा करती शिव सुख मांगे रे । राय सिद्धारथ पडिमा पूजी, कल्पसूत्र मां रागे रे । शान्ति. ॥ 6॥ विद्या चारण मुनिवर वन्दी, पडिमा पंचम अंगे रे । जंघाचारण वीशमे शतके, जिन पडिमा मन रंगे रे । शान्ति ॥ 7 ॥ आर्य सुहस्ति सूरि उपदेशे, साचो सम्प्रति राय रे । सवा क्रोड जिन बिम्ब भराव्या, धन धन तेहनी माय रे । शान्ति ॥ 8 ॥ मोकली प्रतिमा अभय कुमारे, देखी आर्द्रकुमार रे । जाति स्मरणे समकित पामी, वरिया शिव वधू सार रे । शान्ति ॥ १ ॥ इत्यादि बहुपाठ कह्या छे, सूत्र मांहे सुखकारी रे। सूत्र तणो एक वर्ण उत्थापे, ते कह्या बहुत संसारी रे। शान्ति ॥ 10 ॥ ते माटे जिन आणाधारी, कुमति कदाग्रह वारी रे। भक्ति तणा फल उत्तराध्ययने, बोधि बीज सुखकारी रे।। शान्ति. एक भवे दोय पदवी पाम्या, सोलमां श्री जिनराया रे । मुज मन मंदिरीये पधराव्युं, धवल मंगल गवराया रे । शान्ति. ।। 12।। जिन उत्तम पद रूप अनुपम, कीर्त्ति कमला नी शाला रे।. 'जीव विजय' कहे प्रभुजीनी भक्ति, करता मंगल माला रे । शान्ति.
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ब्रह्मचर्य ही जीवन का सच्चा सुख है।