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प्रतिष्ठा कराई थी। यह मूर्ति राजा श्रेणिक ने बनाई थी (2) विशाला नगरी की खुदाई से जो मूर्तियों के खण्डहर निकले हैं, उन्हें शिल्पशास्त्रियों ने 2200 वर्ष प्राचीन स्वीकार किये हैं। (3) मथुरा के कंकाली टीला को अंग्रेजों ने खुदवाया, उसमें से जैन, बौद्ध और हिन्दू मंदिर मूर्तियों के प्रचुरता से भग्नाऽवशेष प्राप्त हुए हैं, उन पर शिलाक्षरन्यास भी अंकित है, जिनका समय विक्रम पूर्व दो तीन शताब्दी का है। (4) आबू के पास मुण्डस्थल नाम का तीर्थ है वहां का शिलालेख प्रगट करता है कि वहां महावीर अपने छद्मस्थपने के सातवें वर्ष पधारे थे। उसी समय वहां पर राजा नन्दिवर्धन ने मन्दिर बनाया (5) कच्छ भद्रेश्वर में वीरात् 23 वर्ष बाद का मन्दिर है। जिसका जीर्णोद्वार दानवीर जगडुशाह ने कराया। (6) ओशिया और कोरटा के मन्दिर वीरात् 70 वर्ष बाद के हैं जो आज भी विद्यमान हैं । क्या इस ऐतिहासिक युग में कोई व्यक्ति यह कह सकता है कि मंदिर बनाने की प्रारम्भिकता को केवल 1000 वर्ष ही हुए हैं? कदापि नही, यदि आपको इनसे भी विशेष प्रमाण देखने की इच्छा हो तो, देखो, मेरी लिखी “मूर्ति पूजा का प्राचीन इतिहास" नामक पुस्तक । - प्र. - यह भी सुना जाता है कि मन्दिर मार्गियों ने मन्दिरों में धाम धूम,
और आरम्भ बहुत बढा दिया, इस हालत में हम लोगों ने मन्दिरों को बिलकुल छोड़ दिया। ____ उ. - सिर पर यदि बाल बढ़ जाये तो क्या बालों के बदले सिर को उड़ा देना योग्य है? यदि नहीं तो फिर मन्दिरों में आरम्भ बढ़ गया तो आरम्भ
और धाम धूम नहीं करने का उपदेश देना था, पर मन्दिर मूर्तियों का ही इनके बदले निषेध करना तो बालों के बदले सिर काटना ही है। जैसे जब शीतकाल आता है तब सभी जन विशेष वस्त्र धारण करते हैं। उस प्रकार जब आडम्बर का काल आया तब धाम धूम (विशेष भक्ति) बढ गए, तो क्या बुरा हुआ? फिर भी अनुचित था तो इसे उपदेशों द्वारा दूर करना था न कि मन्दिरों को छोड़ना। धामधूम का जमाने ने केवल मन्दिरों पर ही नहीं परन्तु सब वस्तु पर समान भाव से प्रभाव डाला है। आप स्वयं सोचें कि कि सच्चा सो मेरा, वीतराग कथित ही सत्य है। उसमें संदेह की जरूरत नहीं। (14