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________________ : ५ : धर्म १. दस धर्म १. उत्तमखम-मद्दवज्जव-सच्च-सउच्चं च संजमं चेव। तव-चागमकिंचण्हं बह्मा इदि दसविहं होदि। (कुन्द० अ० ७०) उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य और उत्तम ब्रह्मचर्य-ये धर्म के दस भेद हैं। २. कोहुप्पत्तिस्स पुणो बहिरंग जदि हवेदि सक्खादं । ण कुणदि किंचि वि कोहो तस्स खमा होदि धम्मो त्ति ।। (कुन्द० अ० ७१) क्रोध की उत्पत्ति का साक्षात् बाह्य कारण होने पर भी जो किंचित् भी क्रोध नहीं करता, उसके क्षमा धर्म होता है। ३. कुल-रूव-जादि-बुद्धिसु तव-सुद-सीलेसु गारवं किंचि। जो ण वि कुव्वदि समणो मद्दवधम्मं हवे तस्स ।। (कुन्द० अ० ७२) जो कुल, रूप, जाति, बुद्धि, तप, श्रुत और शील का किंचित् भी मद नहीं करता, उसके मार्दव धर्म होता है। ४. जे चिंतेइ ण वंकं ण कुणदि वंकं ण जंपए वंकं । ण य गोवदि णिय-दोसं अज्जव-धम्मो हवे तस्स ।। (द्वा० अ० ३६६) जो मन में वक्र चिन्तन नहीं करता, जो काय से वक्र आचरण नहीं करता, जो वचन से वक्र नहीं बोलता और अपने दोषों को नहीं छिपाता, उसके उत्तम आर्जव धर्म होता है। ५. परसंतावयकारणवयणं मोत्तूण सपरहिदवयणं । जो वददि भिक्खु तुरियो तस्स दु धम्मो हवे सच्चं ।। (कुन्द० अ०७४) । दूसरों को सन्ताप पहुँचाने वाले वचनों का त्याग कर जो अपना और दूसरों का हित करने वाला वचन बोलता है, उसके चौथ सत्य धर्म होता है।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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