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३७. दर्शन
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ऐसा विश्वास मत रखो कि बन्ध और मोक्ष नहीं हैं, पर विश्वास रखो कि बन्ध और मोक्ष हैं। ७. णत्थि धम्मे अधम्मे वा णेवं सण्णं णिवेसए।
अत्थि धम्मे अधम्मे वा एवं सणं णिवेसए।। (सू० २, ५ : १४)
ऐसा विश्वास मत रखो कि धर्म और अधर्म नहीं है, पर विश्वास रखो कि धर्म और अधर्म हैं। ८. णत्थि किरिया अकिरिया वा णेवं सणं णिवेसए।
अत्थि किरिया अकिरिया वा एवं सण्णं णिवेसए ।। (सू० २, ५ : १६)
ऐसा विश्वास मत रखो कि क्रिया और अक्रिया नहीं हैं, पर विश्वास रखो कि क्रिया और अक्रिया हैं। ६. णत्थि कोहे व माणे वा णेवं सण्णं णिवेसए।।
अत्थि कोहे व माणे वा एवं सण्णं णिवेसए।। (सू० २, ५ : २०)
ऐसा विश्वास मत रखो कि क्रोध और मान नहीं है, पर विश्वास रखो कि क्रोध और मान हैं। १०. णत्थि माया व लोभे वा णेवं सण्णं णिवेसए।
अत्थि माया व लोभे वा एवं सण्णं णिवेसए।। (सू० २, ५ : २१)
ऐसा विश्वास मत रखो कि माया और लोभ नहीं हैं, पर विश्वास रखो कि माया और लोभ हैं। ११. णत्थि पेज्जे व दोसे वा णेवं सण्णं णिवेसए।
अत्थि पेज्जे व दोसे वा एवं सण्णं णिवेसए।। (सू० २, ५ : २२)
ऐसा विश्वास मत रखो कि राग और द्वेष नहीं हैं, पर विश्वास रखो कि राग और द्वेष हैं। १२. णत्थि चाउरंते संसारे णेवं सण्णं णिवेसए।
अत्थि चाउरंते संसारे एवं सणं णिवेसए।। (सू० २, ५ : २३)
ऐसा विश्वास मत रखो कि चार अन्त-चार गति रूप संसार नहीं हैं, पर विश्वास रखो कि चार अन्त-चार गति रूप संसार है। १३. णत्यि सिद्धी असिद्धी वा णेवं सण्णं णिवेसए।
अस्थि सिद्धी असिद्धी वा एवं सण्णं णिवेसए।। (सू० २, ५ : २५)