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________________ ३५० महावीर वाणी ऐसा विश्वास मत रखो कि मोक्ष और अमोक्ष नहीं हैं, पर विश्वास रखो कि मोक्ष और अमोक्ष हैं। १४. णत्थि सिद्धी णियं ठाणं णेवं सण्णं णिवेसए। अत्थि सिद्धी णियं ठाणं एवं सण्णं णिवेसए।। (सू० २, ५ : २६) ऐसा विश्वास मत रखो कि सिद्धी-सिद्धों का निर्दिष्ट स्थान नहीं है, पर विश्वास रखो कि सिद्धि-सिद्धों का निर्दिष्ट स्थान है। २. सम्यक्त्व का महत्त्व १. सद्दहइ ताण रूवं सो सद्दिट्टो मुणेयवो। (द० पा० १६) जो पदार्थों के यथार्थ स्वरूप का श्रद्धान करता है, उसे समयग्दृष्टि जानना चाहिए। २. सम्मत्तसलिलपवहो णिच्चं हियए पवट्टए जस्स। कम्मं वालुयवरणं बंधुच्चिय णासए तस्स।। (द० पा० ७) जिस पुरुष के हृदय में नित्य समयक्त्व रूपी जल का प्रवाह बहता रहता है, उसके पूर्वबद्ध कर्मरूपी बालु-कणों का आवरण नष्ट हो जाता है। ३. जह मूलम्मि विणढे दुमस्स परिवार णत्थि परिवड्ढी। तह जिणदंसणभट्ठा मूलविणट्ठा ण सिझंति ।। (द० पा० १०) जैसे मूल के नष्ट हो जाने पर वृक्ष के शाखा, पत्र, पुष्प, आदि परिवार की वृद्धि नहीं होती, वैसे ही जो जिन-प्ररूपित समयग्दर्शन से भ्रष्ट हैं, वे मूल से विच्छिन्न हैं। उन्हें मुक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती। ४. दंसणसुद्धो सुद्धो दंसणसुद्धो लहेइ णिव्वाणं। दसणविहीणपुरिसो न लहइ तं इच्छियं लाह।। (मो० पा० ३६) जो सम्यग्दर्शन से शुद्ध है, वही शुद्ध है। समयग्दर्शन से शुद्ध मनुष्य ही मोक्ष को प्राप्त करता है। जो पुरुष सम्यग्दर्शन से रहित है उसे इच्छित वस्तु-मोक्ष का लाम नहीं होता। ५. जह मूलाओ खंधो साहापरिवार बहुगुणो होइ। तह जिणदसण मूलो णिहिट्ठो मोक्खमग्गस्स।। (द० पा० ११) जैवे वृक्ष के मूल से शाखा, पत्र आदि परिवारवाला बहुगुणी स्कन्ध उत्पन्न होता है। वैसे ही जिन-दर्शन (सम्यग्दर्शन) को मोक्षमार्ग का मूल कहा है।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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