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________________ : ३७ : दर्शन १. समयकत्व - सार १. णत्थि लोए अलोए वा णेवं सण्णं णिवेसए । अत्थि लोए अलोए वा एवं सण्णं णिवेस ।। ऐसा विश्वास मत रखो कि लोक और अलोक नहीं हैं, लोक और अलोक हैं । २. णत्थि जीवा अजीवा वा णेवं सण्णं णिवेसए । अस्थि जीवा अजीवा वा एवं सण्णं णिवेसए । । (सू० २, ५ : १३) ऐसा विश्वास मत रखो कि जीव और अजीव नहीं हैं, पर विश्वास रखो कि जीव और अजीव हैं। ३. णत्थि पुण्णे व पावे वा णेवं सण्णं णिवेसए । अत्थि पुणे व पावे वा एवं सण्णं णिवेसए ।। ऐसा विश्वास मत रखो कि पुण्य और पाप नहीं हैं, पर और पाप हैं। ( सू० २,५ : १२) पर विश्वास रखो कि ४. णत्थि आसवे संवरे वा णेवं सण्णं णिवेसए । अत्थि आसवे व संवरे वा णेवं सण्णं णिवेसए । । (सू० २, ५ : १६) विश्वास रखो कि पुण्य ( सू० २,५ : १७ ) ऐसा विश्वास मत रखो कि आस्रव और संवर नहीं है, पर विश्वास रखो कि आस्रव और संवर हैं। ५. णत्थि वेयणा णिज्जरा वा णेवं सण्णं णिवेसए । अत्थि वेयणा णिज्जरा वा एवं सण्णं णिवेसए । । । ( सू० २,५ : १८ ) ऐसा विश्वास मत रखो कि वेदना - कर्म फल और निर्जरा नहीं हैं, पर विश्वास रखो कि कर्म-फल और निर्जरा हैं। ६. णत्थि बंधे व मोक्खे वा णेवं सण्णं णिवेसए । अत्थि बंधे व मोक्खे वा एवं सण्णं णिवेसए । । । ( सू० २, ५ : १५)
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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