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दर्शन
१. समयकत्व - सार
१. णत्थि लोए अलोए वा णेवं सण्णं णिवेसए । अत्थि लोए अलोए वा एवं सण्णं णिवेस ।। ऐसा विश्वास मत रखो कि लोक और अलोक नहीं हैं, लोक और अलोक हैं ।
२. णत्थि जीवा अजीवा वा णेवं सण्णं णिवेसए । अस्थि जीवा अजीवा वा एवं सण्णं णिवेसए । ।
(सू० २, ५ : १३)
ऐसा विश्वास मत रखो कि जीव और अजीव नहीं हैं, पर विश्वास रखो कि जीव
और अजीव हैं।
३. णत्थि पुण्णे व पावे वा णेवं सण्णं णिवेसए । अत्थि पुणे व पावे वा एवं सण्णं णिवेसए ।।
ऐसा विश्वास मत रखो कि पुण्य और पाप नहीं हैं, पर और पाप हैं।
( सू० २,५ : १२)
पर विश्वास रखो कि
४. णत्थि आसवे संवरे वा णेवं सण्णं णिवेसए । अत्थि आसवे व संवरे वा णेवं सण्णं णिवेसए । ।
(सू० २, ५ : १६)
विश्वास रखो कि पुण्य
( सू० २,५ : १७ )
ऐसा विश्वास मत रखो कि आस्रव और संवर नहीं है, पर विश्वास रखो कि आस्रव और संवर हैं।
५. णत्थि वेयणा णिज्जरा वा णेवं सण्णं णिवेसए ।
अत्थि वेयणा णिज्जरा वा एवं सण्णं णिवेसए । । । ( सू० २,५ : १८ )
ऐसा विश्वास मत रखो कि वेदना - कर्म फल और निर्जरा नहीं हैं, पर विश्वास रखो कि कर्म-फल और निर्जरा हैं।
६. णत्थि बंधे व मोक्खे वा णेवं सण्णं णिवेसए ।
अत्थि बंधे व मोक्खे वा एवं सण्णं णिवेसए । । । ( सू० २, ५ : १५)