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महावीर वाणी
सम्यक्त्व, ज्ञान, संयम और तप-इनसे जीव का जो प्रशस्त समभाव के प्रति गमन है उसको समय कहते हैं। उसी को तुम सामायिक जानो।
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.. ५. विरदो सव्वसावज्जे तिगुत्तो पिहिदिदिओ।
तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे।। (नि० सा० १२५)
केवली भगवान् के शासन में उसी के सामायिक स्थिर कही कई है, जो सर्व सावध योग से निवृत्त है, तीन गुप्तियों से गुप्त हैं और जो इन्द्रियों को जीत चुका है। ६. जस्स सण्णिहिदो अप्पा संजमे णियमे तवे।
तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे।। (नि० सा० १२७)
केवली भगवान् के शासन में उसी के सामायिक स्थिर कही गई है, जिसकी आत्मा संयम, नियम और तप में संनिहित है। ७. जस्स रागो दु दोसो दु विगडिं ण जणेत्ति दु।।
तस्स सामाइगं ठाई इदि केवलिसासणे।। (नि० सा० १२८)
केवली भगवान् के शासन में उसी के सामायिक स्थिर कही गई है, जिसमें राग, और द्वेष विकृति उत्पन्न नहीं करते। ८. जो दु अट्टं च रुद्दे च झाणं वज्जेदि णिच्चसा।
तस्स सामाइगं ठाई इदि केवलिसासणे।। (नि० सा० १२६)
केवली भगवान् के शासन में उसी के सामायिक स्थिर कही गई है, जो सदा आर्त और रौद्र ध्यान का परित्याग करता है। ६. जो द् पुण्णं च पावं च भावं वज्जेदि णिच्चसा।
तस्स सामाइगं ठाई इदि केवलसासणे।। (नि० सा० १३०)
केवली भगवान के शासन में उसी के सामायिक स्थिर कही गई है, जो पुण्य और पाप के भावों का सदा वर्जन करता है। १०. जो दु हस्सं रई सोगं अरतिं व्रज्जेदि णिच्चसा।
तस्स सामाइगं ठाई इंदि' केवलिसासणे।। (नि० सा० १३१)
केवली भगवान के शासन में उसी के सामायिक स्थिर कही गई है, जो हास्य, रति, शोक और अरति का हमेशा वर्जन करता है।
११. जो दुगंछा भयं वेदं सव्वं वज्जेदि णिच्चसा। .. तस्स सामाइगं ठाई इदि केवलसासणे।। (नि० सा० १३२)