SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२६ महावीर वाणी ३. णिक्किचणे भिक्खू सुलूहजीवी जे गारवं होइ सिलोगगामी। आजीवमेयं तु अबुज्झमाणो पुणो-पुणो विप्परियासुवेति।। (सू० १, १३ : १२) निष्किंचन और रूखे-सूखे आहार पर जीवन चलाने वाला भिक्षु होकर भी जो मानप्रिय ओर स्तुति की कामना वाला होता है, उसका वेष केवल आजीविका के लिए होता है। परमार्थ को न जानकर वह बार-बार संसार भ्रमण करता है। ४. जे भासवं भिक्खु सुसाहुवादी पडिहाणवं होइ विसारए य। आगाढपण्णे सुय-भावियप्पा अण्णं जणं पण्णसा परिहवेज्जा।। एवं ण से होति समाहिपत्ते जे पण्णसा भिकखु विउक्कसेज्जा। अहवा वि जे लाभमदावलित्ते अण्णं जणं खिंसति बालपण्णे।। (सू० १, १३ : १३-१४) भाषा का जानकार, हित-मित बोलने वाला, प्रतिभगवान विशारद, स्थिर-प्रज्ञ और आत्मा को धर्म-भाव में लीन रहने वाला-ऐसा भी जो साधु अपनी प्रज्ञा से दूसरे का तिरस्कार करता है, जो लाभ-मद से अवलिप्त हो दूसरे की निन्दा करता है और अपनी प्रज्ञा का अभिमान रखता है वह मूर्ख बुद्धि वाला पुरुष समाधि प्राप्त नहीं कर सकता। ५. पण्णामदं चेव तुवोमदं च, णिण्णामए गोयमदं च भिक्खू । आजीवगं चेव चउत्थमाहु, से पंडिए उत्तमपोग्गले से।। . (सू० १, १३ : १५) प्रज्ञा-मद, तप-मद, गोत्र-मद और चौथा आजीविका का मद-इन चारों मदों को नहीं करने वाला भिक्षु सच्चा पण्डित और उत्तम आत्मा वाला होता है। ६. एयाइं मदाई विगिंच धीरा णेताणि सेवंति सुधीरधम्मा। ते सव्वगोतावगता महेसी उच्च अगोतं च गतिं वयंति।। (सू० १, १३ : १६) जो धीर पुरुष इन मदों को दूर कर धर्म में स्थिर बुद्धि हो इनका सेवन नहीं करते वे सर्व गोत्र से पार पहुँचे हुए महर्षि उच्च अगोत्र-मोक्ष को पाते हैं। ७. तय सं व जहाइ से रयं इइ संखाय मुणी ण मज्जई। गोयण्णतरेण माहणे अहऽसेयकरी अण्णेसि इखिणी।। (सू० १, २ (२) : १) जिस तरह सर्प काँचली को छोड़ता है उसी तरह सन्त पुरुष पाप-रज को झाड़ देते हैं। यह जानकर मुनि गोत्र या अन्य बातों का अभिमान न करे और न दूसरों की अश्रेयस्कारी निंदा करे।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy