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४. तेसिं चेव वदाणं रक्खट्ठ रादिभोयणणियत्ती । अट्ठयपवयणमादा य भावणाओ य सव्वाओ ।।
(मू० २६५)
रात्रिभोजन निवृत्ति का विधान अहिंसा पाँच महाव्रतों की रक्षा के लिए है, जैसे आठ प्रवचन-माताओं और सर्व भावनाओं का ।
५. तेसिं पंचण्हंपि य वयाणमावज्जणं च संका वा । अ हवे
आदविवत्ती
रादीभत्तप्पसंगेण ।।
(म २६६ )
रात्रि - भोजन के प्रसंग से मुनि के उन अहिंसादि पाँच महाव्रतों में मलिनता आती है, उनका नाश होता है, गृहस्थों को शंका होती है और आत्म-विपत्ति उत्पन्न होती है।
५. कौन संसार - भ्रमण नहीं करता ?
१. रागद्दोसे य दो पावे पावकम्मपवत्तणे । जे भिक्खू रुम्भई निच्चं से न अच्छइ मंडले ||
महावीर वाणी
(उ० ३१ : ३)
राग और द्वेष- ये दो पाप है, जो ज्ञानावरणीय आदि पाप कर्मों के प्रवर्त्तक हैं। जो भिक्षु इनका सदा निरोध करता है, वह संसार में नहीं रहता।
२. दण्डाणं गारवाणं च सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खू चयई निच्चं से न अच्छइ मंडले । ।
( उ० ३१ : ४)
तीन दण्ड', तीन गौरव' तथा तीन शल्य' - इन तीन-तीन का जो भिक्षु नित्य त्याग करता है, वह संसार में नहीं रहता ।
३. दिव्वे य जे उवसग्गे तहा तेरिच्छमाणुसे ।
जे भिक्खू सहई निच्चं से न अच्छइ मंडले ||
( उ० ३१ : ४)
जो मनुष्य देव, तिर्यञ्च और मनुष्य सम्बन्धी उपसर्ग - परीषहों को सदा सहता है । वह संसार में नहीं रहता ।
१. मन दंड, वचन दंड और काय दंड |
२. ऋद्धि का गर्व, रस का गर्व और सात --सुख का गर्व ।
३.
माया, निदान (फल-कामना) और मिथ्यात्व |