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महावीर वाणी
. ६. पुढविकायं विहिंसंतो हिंसई उ तयस्सिए।
तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अच्क्खु से।। (द० ६ : २७) ___ पृथ्वीकाय, (अपकाय, अग्निकाय, वनस्पतिकाय और तसकाय-इन जीवों) की हिंसा करता हुआ प्राणी उनके आश्रित अनेक प्रकार के चक्षुओं द्वारा दिखाई देनेवाले या न दिखाई देनेवाले त्रस और स्थावर प्राणियों की हिंसा करता है। ७. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं ।
पुढविकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए।। (द० ६ : २८)
इसलिए इसे दुर्गतिवर्धक दोष जानकर मुमुक्षु यावज्जीवन पृथ्वीकाय आदि छह प्रकार के जीवों के समारंभ का वर्जन करे। ८. तसे पाणे न हिंसेज्जा वाया अदुव कम्मुणा।
उवरओ सदभूएसु पासेज्ज विविहं जगं।। (द० ८ : १२)
मुनि मन, वचन और काया से त्रस प्राणियों की हिंसा न करे। सर्वभूतों की हिंसा से विरत साधु सारे जगत् को-सर्व प्राणियों को-आत्मवत् देखे। ६. इच्चेयं छज्जीवणियं सम्मदिठी सया जए।
दुलहं लभित्तु सामण्णं कम्मुणा न विराहेज्जासि।। (द० ४ : २८)
दुर्लभ रमण-भाव को प्राप्त करके समदृष्टि और सदा यत्न से प्रवृत्ति करनेवाले मुनि इन षट् जीव-निकाय के जीवों की मन, वचन और काया से कभी भी विराधना न करे।
[२] १०. अट्ठ सुहुमाइं पेहाए जाइं जाणित्तू।
दयाहिगारी भूएसु आस चिट्ठ सएहि वा।। (द० ८ : १३)
संयमी मुनि आठ प्रकार के सूक्ष्म जीवों को जानने से सर्व जीवों के प्रति दया-अहिंसा का अधिकारी होता है इन जीवों को भलीभाँति देखकर मुनि बैठे, खड़ा हो और सोए। ११. सिणेहं पुप्फसुहुमं च पाणुत्तिंग तहेव य।
पणगं बीय हरियं च अंडसुहुमं च अट्ठमं ।। (द० ८ : १५)
सूक्ष्म स्नेह-ओस, बर्फ, धुंअर आदि, पुष्प, प्राणी, उत्तिंग-चींटी आदि का नगर, पनग-काई, बीज, हरितकाय और अण्डे-ये आठ प्रकार के सूक्ष्म जीव हैं।