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________________ ३१४ महावीर वाणी . ६. पुढविकायं विहिंसंतो हिंसई उ तयस्सिए। तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अच्क्खु से।। (द० ६ : २७) ___ पृथ्वीकाय, (अपकाय, अग्निकाय, वनस्पतिकाय और तसकाय-इन जीवों) की हिंसा करता हुआ प्राणी उनके आश्रित अनेक प्रकार के चक्षुओं द्वारा दिखाई देनेवाले या न दिखाई देनेवाले त्रस और स्थावर प्राणियों की हिंसा करता है। ७. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । पुढविकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए।। (द० ६ : २८) इसलिए इसे दुर्गतिवर्धक दोष जानकर मुमुक्षु यावज्जीवन पृथ्वीकाय आदि छह प्रकार के जीवों के समारंभ का वर्जन करे। ८. तसे पाणे न हिंसेज्जा वाया अदुव कम्मुणा। उवरओ सदभूएसु पासेज्ज विविहं जगं।। (द० ८ : १२) मुनि मन, वचन और काया से त्रस प्राणियों की हिंसा न करे। सर्वभूतों की हिंसा से विरत साधु सारे जगत् को-सर्व प्राणियों को-आत्मवत् देखे। ६. इच्चेयं छज्जीवणियं सम्मदिठी सया जए। दुलहं लभित्तु सामण्णं कम्मुणा न विराहेज्जासि।। (द० ४ : २८) दुर्लभ रमण-भाव को प्राप्त करके समदृष्टि और सदा यत्न से प्रवृत्ति करनेवाले मुनि इन षट् जीव-निकाय के जीवों की मन, वचन और काया से कभी भी विराधना न करे। [२] १०. अट्ठ सुहुमाइं पेहाए जाइं जाणित्तू। दयाहिगारी भूएसु आस चिट्ठ सएहि वा।। (द० ८ : १३) संयमी मुनि आठ प्रकार के सूक्ष्म जीवों को जानने से सर्व जीवों के प्रति दया-अहिंसा का अधिकारी होता है इन जीवों को भलीभाँति देखकर मुनि बैठे, खड़ा हो और सोए। ११. सिणेहं पुप्फसुहुमं च पाणुत्तिंग तहेव य। पणगं बीय हरियं च अंडसुहुमं च अट्ठमं ।। (द० ८ : १५) सूक्ष्म स्नेह-ओस, बर्फ, धुंअर आदि, पुष्प, प्राणी, उत्तिंग-चींटी आदि का नगर, पनग-काई, बीज, हरितकाय और अण्डे-ये आठ प्रकार के सूक्ष्म जीव हैं।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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