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________________ महावीर वाणी निश्चय ही जो वीर है उसे भी मरना होगा और जो कापुरुष है उसे भी मरना है। यदि दोनों को ही मरना होगा तो वीरता के साथ मरना ही श्रेयस्कर है। ३०४ २. तिविहं भणति मरणं बालाणं बालपंडियाणं च । तइयं पंडियमरणं जं केवलिओ अणुमरंति ।। ( मूल० २ : ३१) बाल, बाल-पण्डित और पण्डितों के मरण के भेद से मरण तीन प्रकार का होता है - बाल-मरण, बाल-पण्डित-मरण और पण्डित-मरण । केवली पण्डित मरण से मृत्यु प्राप्त करते हैं। ३. बालमरणाणि बहुसो बहुयाणि अकामयाणि मरणाणि । मरिहंति ते वराया जे जिणवयणं ण जाणंति । । (मूल० २ : ७३ ) जो जिन-वचन को नहीं जानते हैं वे मूर्ख बहुत से अनिष्ट बाल-मरणों से मृत्यु को प्राप्त करेंगे, उनके अनेक अकाम करण होंगे। ४. एगहि भवग्गणे समाहिमरणं लभेज्ज जदि जीवो। णिव्वाणमणुत्तरं सत्तट्ठभवग्गहणे यदि एक भी भव में जीव समाधि मरण को प्राप्त कर लेता है तो सात-आठ भवों.. में ही अनुत्तर निर्वाण को प्राप्त कर लेता है । लहदि । । (मूल० २ : ५४) ५. एक्कं पंडिदमरणं छिंदंदि जादीसयाणि बहुगाणि । तं मरणं मरिदव्वं जेण मदं सुम्मदं होदि ।। (मूल० २ : ६४ ) एक पण्डित-मरण अनेक जन्मों का नाश करता है। अतः ऐसे मरण से मृत्यु प्राप्त करना चाहिए जिससे मरण सुमरण हो । ६. सम्मद्दंसणरत्ता अणियाणा सुक्कलेस्समोगाढा । इह जे मरंति जीवा तेसिं सुलहा हवे बोही ।। (मूल० २ : ७१) जो सम्यग्दर्शन में रत होते हैं, जो निदान - फल-कामना - नहीं करते, जो शुक्ललेश्या के धारक होते हैं - इस प्रकार जो मृत्यु को प्राप्त होते हैं उन्हें बोधि सुलभ होती है। ७. जिणवयणे अणुरत्ता गुरुवयणं जे करंति भावेण । असबल असंकिलिठ्ठा ते होंति परित्तसंसारा ।। ( मूल० २ : ७२ ) जो जिन-वचनों में अनुरक्त होते हैं और जो अन्तरमन से गुरुवचनों के अनुसार चलते हैं वे अशबल और असंक्लिष्ट पुरुष संसार को संक्षिप्त करने वाले होते हैं। ८. उड्ढमधोतिरियम्हि दु कदाणि बालमरणाणि बहुगाणि । पंडियमरणं अणुमरिस्से । । (मूल० २ ७५) दंसणणाणसहगदों
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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