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: महावीर वाणी
८. न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सई असासया भोगपिवास जंतुणो । न चे सरीरेण इमेणवेस्सई अविस्सई जोवियपज्जवेण म ।। (द० चू० १ : १६)
यह मेरा दुःख चिरकाल तक नहीं रहेगा। जीवों की भोग-पिपासा अशाश्वत है। यदि विषय- तृष्णा इस शरीर से न जायेगी तो मेरे जीवन के अन्त में अवश्य मिट जायेगी । ६. जस्सेवमप्पा उ हवेज्ज निच्छिओ चएज्ज देहं न उ धम्मसासणं । तं तारिसं नो पयलेंति इंदिया उवेंतवाया व
सुदंसणं गिरिं । । (द० चू० १ : १७)
जिसकी आत्मा इस प्रकार दृढ़ होती है, वह देह को त्याग देता है, पर धर्मशासन को नहीं छोड़ता । इन्द्रियाँ (विषय- सुख) ऐसे दृढ़धर्मी मनुष्य को उसी तरह विचलित नहीं कर सकतीं जिस तरह वेगपूर्ण गति से आता हुआ महावायु सुदर्शन गिरि को ।