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________________ ३२. श्रामण्य और प्रव्रज्या २६७ ४. भिक्षाचर्या और आहार-विधि १. सइ काले चरे भिक्खू कुज्जा पुरिसकारियं । अलाभो त्ति न सोएज्जा तवो त्ति अहियासए।। (द० ५ (२) : ६) भिक्षु भिक्षा का काल उपस्थित होने पर गोचरी के लिए जाय और यथोचित पुरुषार्थ करे। यदि भिक्षा न मिले तो शोक न करे किन्तु सहज ही तप हुआ-ऐसा विचार कर क्षुधा आदि परीषह को सहन करे। २. समुयाणं उंछमेसिज्जा जहासुत्तमणिन्दियं। लाभालाभम्मि संतुढे पिण्डवायं चरे मुणी।। (उ० ३५ : १६) मुनि सूत्र के नियमानुसार निर्दोष और सामुदायिक उञ्छ की गवेषणा करे। वह लाभालाभ में संतुष्ट रहता हुआ भिक्षाचर्या करे। ३. कालेण निक्खमे भिक्खू कालेण य पडिक्कमे। अकालं च विवज्जित्ता काले कालं समायरे।।' (उ० १ : ३१) साधु समय पर भिक्षा के लिए निकले और समय पर वापस आ जाय। अकाल को टालकर नियत काल पर कार्य करे। ४. संपत्ते भिक्खकालम्मि असंभंतो अमुच्छिओ। इमेण कमजोगेण भत्तापाणं. गवेसए।। (द० ५ (१) : १) भिक्षा का काल प्राप्त होने पर साधु असंभ्रांत, उद्वेगरहित और आहारादि में मूच्छित न होता हुआ इस आगे बताई जाने वाली विधि से भक्त-पान की गवेषणा करे। ५. एसणासमिओ लज्जू गामे अणियओ चरे। अप्पमत्तो पमत्तेहिं पिंडवायं गवेसए।। (उ० ६ : १६) एषणा समिति से युक्त संयमशील साधु अनियमित रूप से ग्राम में विचरण करे और प्रमादरहित रह प्रमत्तों (गृहस्थों) से पिण्डपात (आहारादि) की गवेषणा करे। ६. से गामे वा नगरे वा गोयरग्गगओ मुणी। चरे मंदमणुब्विग्गो अव्वक्खित्तेण चेयसा।। (द० ५ (१) : २) गाँव में अथवा नगर में गोचराग्र के लिए गया हुआ मुनि उद्वेगरहित, शांतचित्त । और मंद गति से चले। १. द०५ (२) : ४।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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