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महावीर वाणी
३. प्रवचन-माताएँ १. अट्ठ पवयणमायाओ समिई गुत्ती तहेव य । पंचेव य समिईओ तओ गुत्तीओ आहिया।। (उ० २४ : १)
समिति और गुप्ति रूप आठ प्रवचन-माताएँ कही गई हैं। समितियाँ पाँच हैं और गुप्तियाँ तीन। २. इरियाभासेसणादाणे उच्चारे समिई इय।
मणगुत्ती वयगुत्ती कायगुत्ती य अट्ठमा।। (उ० २४ : २)
ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान समिति और उच्चार समिति तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति-ये आठ प्रवचन-माताएँ हैं। ३. पणिधाणजोगजुत्तो पंचसु समिदिसु तीसु गुत्तीसु।
एस चरित्ताचारो अट्ठविधो होइ णायव्वो।। (मू० २६७)
भावों के योग से युक्त पाँच समिति और तीन गुप्तियों में जो प्रवृत्ति है, वही आठ प्रकार का चारित्राचार है-ऐसा जानना चाहिए। ४. एताओ अट्ठपवयणमादाओ णाणदंसणचरित्तं।
रक्खंति सदा मुणिणो मादा पुत्तं व पयदाओ।। (मू० ३३६)
ये आठ प्रवचन-माताएँ मुनि के ज्ञान, दर्शन और चारित्र की उसी प्रकार रक्षा करती हैं जिस प्रकार माता प्रयत्नपूर्वक पुत्र की। ५. एयाओ अट्ठ समिईओ समासेण वियाहिया।
दुवालसंगं जिणक्खायं मायं जत्थ उ पवयणं ।। (उ० २४ : ३)
नीचे इन आठ-पाँच समितियों और तीन गुप्तियों का संक्षेप में वर्णन किया गया है। जिन-भाषित द्वादशांग उक्त आठों प्रवचन-माताओं में समाया हुआ है।
१. ईर्या समिति ६. फासुयमग्गेण दिवा जुगंतरप्पेहणा सकज्जेण।
जंतूण परिहरंति इरियासमिदि हवे गमणं ।। (मू० ११)
निर्जीव मार्ग से दिन में चार हाथ प्रमाण भूमि को देखते हुए तथा प्राणियों का परिहार करते हुए अपने कार्य के लिए संयमी का जो गमन है, वह ईर्या समिति है।
१. भग० आ० १२०५।