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३२. श्रामण्य और प्रव्रज्या
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या अरण्य में-कहीं भी अल्प अथवा बहुत, सूक्ष्म अथवा स्थूल, सचित्त अथवा अचित्त परिग्रह मैं स्वयं ग्रहण नहीं करूँगा, दूसरों से परिग्रह ग्रहण नहीं कराऊँगा और परिग्रह ग्रहण करनेवालों का अनुमोदन भी नहीं करूँगा। त्रिविध-त्रिविध रूप से मन, वचन और काया से नहीं करूँगा, नहीं कराऊँगा, करनेवालों का अनुमोदन भी नहीं करूँगा । परिग्रह ग्रहण का मुझे यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान है।
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भंते! मैंने अतीत में परिग्रह सेवन किया, उससे अलग हाता हूँ, उसकी निंदा करता हूँ, गर्हा करता हूँ और आत्मा का व्युत्सर्ग-त्याग करता हूँ ।
हे भंते ! मैं सर्व परिग्रह से विरमण के लिए इस पाँचवें महाव्रत में उपस्थित हुआ हूँ । ६. अहावरे छट्ठे भंते! वए राईभोयणाओ वेरमणं सव्वं भंते! राईभोयणं पच्चक्खामि - से असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा, नेव सयं राई भुंजेज्जा नेवन्नेहिं राई भुंजावेज्जा राई भुंजते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेम करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । छटठे भंते! वए उवट्ठिओमि सव्वाओ राईभोयणाओ वेरमणं ।। (द० ४, सू० १६)
हे भंते! इसके बाद छठे व्रत में रात्रि भोजन से विरमण होता है। हे भंते! मैं सर्व रात्रि-भोजन का प्रत्याख्यान करता हूँ । अन्न, पान, खाद्य और स्वाद्य वस्तुओं का मैं स्वयं रात्रि में भोजन नहीं करूँगा, न दूसरों से रात्रि में भोजन कराऊँगा और रात्रि में भोजन करनेवालों का अनुमोदन भी नहीं करूँगा । त्रिविध-त्रिविध रूप से - मन, वचन और काया से नहीं करूँगा, नहीं कराऊँगा, करनेवालों का अनुमोदन भी नहीं करूँगा। रात्रि भोजन का मुझे यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान - त्याग है ।
! मैंने अतीत में रात्रि भोजन किया है, उससे अलग होता हूँ, उसकी निंदा करता हूँ, गर्हा करता हूँ और आत्मा का व्युत्सर्ग-त्याग करता हूँ ।
भंते! मैं सर्व रात्रि भोजन से विरमण के लिए इस छठे व्रत में उपस्थित
हुआ हूँ।
७. इच्चेयाइं पंच महव्वयाइं राईभोयण वेरमणं छट्ठाइं अत्तहियट्टयाए उवसंपज्जित्ताणं विहरामि । (द० ४, सू० १७ )
पूर्वोक्त पाँच महाव्रत और छठे इस रात्रि भोजन विरमण व्रत को आत्महित के लिए ग्रहण कर मैं संयम में विचरण करता हूँ ।