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महावीर वाणी
हे भन्ते ! अतीत में मैंने अदत्त ग्रहण किया है-चोरी की है, उससे अलग होता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ और आत्मा का व्युत्सर्ग-त्याग, करता हूँ।
हे भन्ते ! मैं सर्व अदत्त से विरमण के लिए इस तीसरे महाव्रत में उपस्थित हुआ हूँ। ४. अहावरे चउत्थे भंते ! महव्वए मेहुणाओ वेरमणं सव्वं भंते ! मेहुणं
पच्चक्खामि-से दिव्वं वा माणसं वा तिरिक्खजोणियं वा, नेव सयं मेहुणं सेवेज्जा नेवन्नेहिं मेहुण सेवावेज्जा मेहुणं सेवंते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि। तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। चउत्थे भंते ! महव्वए उवढिओमि सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं ।
(द० ४, सू० १४) हे भंते ! इसके बाद चौथे महाव्रत में मैथुन से विरमण होता है।
हे भंते ! मैं सर्व मैथुन का प्रत्याख्यान करता हूँ। देव-सम्बन्धी, मनुष्य-सम्बन्धी, अथवा तिर्यञ्च-सम्बन्धी-जो भी मैथुन हैं, मैं उसका सेवन नहीं करूँगा, दूसरे से मैथुन का सेवन नहीं कराऊँगा और मैथुन सेवन करनेवालों का अनुमोदन भी नहीं करूँगा। त्रिविध-त्रिविध रूप से-मन, वचन और काया से नहीं करूँगा, नहीं कराऊँगा, करने वाले का अनुमोदन भी नहीं करूँगा। मैथुन सेवन का मुझे यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान है।
हे भंते ! मैंने अतीत में मैथुन सेवन किया, उससे अलग होता हूँ, उसकी निंदा करता हूँ, गर्दा करता हूँ और आत्मा का व्युत्सर्ग-त्याग करता हूँ।
हे भंते ! मैं सर्व मैथुन से विरमण के लिए इस चौथे महाव्रत में उपस्थित हुआ हूँ। ५. अहावरे पंचमे भंते ! महव्वए परिग्गहाओ वेरमणं सव्वं भंते ! परिग्गहं पच्चक्खामि-से गामे वा नगरे वा रण्णे वा अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा, नेव सयं परिग्गहं परिगेण्हेज्जा नेवन्नेहिं परिग्गहं परिगेण्हावेज्जा परिग्गहं परिगेण्हते वि अन्ने न समणजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि। तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। पंचमे भंते ! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ।
(द० ४, सू० १५) हे भंते ! इसके बाद पाँचवें महाव्रत में परिग्रह से विरमण होता है। हे भंते ! मैं सर्व प्रकार के परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूँ। गाँव में, नगर में