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महावीर वाणी
इस प्रकार माता-पिता को सम्मत कर वह वैरागी अनेकविध ममत्व को उसी प्रकार छोड़ता है जिस प्रकार महानाग काँचली को छोड़ता है।
३६. इड्ढि वित्तं च मित्ते य पुत्तदारं च नायओ।
रेणुयं व पडे लग्गं निधुणित्ताण निग्गओ।। (उ० १६ : ८७)
जैसे कपड़े में लगी हुई रेणु-रज को झाड़ दिया जाता है, उसी प्रकार ऋद्धि, वित्त, मित्र, पुत्र, स्त्री और सम्बन्धीजनों के मोह को छिटकाकर वह वैरागी घर से निकल पड़ा।
२. प्रत्याख्यान और प्रव्रज्या १. पढमे भंते ! महव्वए पाणइवायाओ वेरमणं । सवं भंते ! पाणाइवायं
पच्चक्खामि-से सुहुमं वा बायर वा तसं वा थावरं वा, नेव सयं पाणे अइवाएज्जा नेवन्नेहिं पाणे अइवायावेज्जा पाणे अइवायंते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं । न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि। तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। पढमे भन्ते ! महव्वए उवट्ठिओमि सब्बाओ पाणाइवायाओ वेरमणं ।
___(द० ४, सू० ११) हे भन्ते ! प्रथम महाव्रत में सर्व प्राणातिपात-हिंसा से विरमण होता है।
हे भन्ते ! मैं सर्व प्राणातिपात का प्रत्याख्यान करता हूँ। सूक्ष्म या स्थूल, त्रस या स्थावर-जो भी प्राणी हैं, मैं स्वयं उनके प्राणों का अतिपात-हिंसा नहीं करूँगा, दूसरों से अतिपात नहीं कराऊंगा और अतिपात करनेवालों का अनुमोदन भी नहीं करूँगा। त्रिविध-त्रिविध रूप से-मन, वचन और काया से नहीं करूँगा, नहीं कराऊँगा, करनेवालों का अनुमोदन भी नहीं करूँगा। प्राणातिपात का मुझे यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान है।
हे भन्ते ! मैंने अतीत में जो प्राणातिपात किया, उससे अलग होता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, गर्दी करता हूँ और आत्मा का व्युत्सर्ग-त्याग करता हूँ।
हे भन्ते ! सर्व प्राणातिपात-विरमण के लिए प्रथम महाव्रत में मैं उपस्थित हुआ हूँ। २. अहावरे दोच्चे भंते ! महब्वए मुसावायाओ वेरमणं सव्वं भंते ! मुसावायं
पच्चक्खामि-से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा, नेव सयं मुसं वएज्जा नेवन्नेहिं मुसं वायावेज्जा मुसं वयंते वि अन्ने न समणु