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________________ १. अनुत्तर मंगल ७. अरिहंति वंदण-नमंसणाई अरिहंति पूय-सक्कारं । सिद्धिगमणं च अरिहा अरहंता तेण वुच्चंति' ।। (आव० नि० ६१५) जो वन्दना और नमस्कार के योग्य हैं, पूजा और सत्कार के योग्य हैं और मोक्ष जाने के योग्य हैं, वे अरहंत भगवान् कहलाते हैं । ८. अरिहंति णमोक्कारं अरिहा पूजा सुरुत्तमा लोए । (मू० आ० ५०५) जो नमस्कार करने योग्य हैं, जो पूजा के योग्य हैं और जो देवों में उत्तम हैं, अर्हन्त हैं । ६. जियकोहमाणमाया जियलोहा तेण ते जिणा होंति । अरिणो हंता रयं हंता अरिहंता तेण वुच्चति ।।२ ३ १०. अरिहंतनमुक्कारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ । भावेण कीरमाणो होइ पुणो बोहिलाभाए । । क्रोध, मान, माया, लोभ इन कषायों को जीत लेने के कारण जिन हैं और रागद्वेषादि शत्रुओं, कर्मरूपी रज व संसार के नाशक होने के कारण अरिहंत या अरहंत कहलाते हैं । (आव०नि० १०८३) ( आव० नि० ६१७ ) अरिहंतो को भाव से किया हुआ नमस्कार जीव को अनन्त जन्म-मरणों की परंपरा से- संसार - परिभ्रमण से मुक्त करता है और पुनः बोधि (सम्यग् ज्ञान) की प्राप्ति का कारण बनता है। ११. अरिहंतनमोक्कारो धन्नाणं भवक्खयं कुणंताणं । हिअयं अणुम्मुअंतो विसुत्तियावारओ होइ ।। ( आव० नि० ६१८ ) धन्यवाद के पात्र जिन मनुष्यों का हृदय भगवान् अर्हन्तों के प्रति नमस्कार से निरंतर सुवासित है, उनके हृदय में दुर्ध्यान प्रवेश नहीं करता । १. अरिहंति सिद्धिगमणं, अरहंता तेण वुच्चंति । (मू० आ० ५६२) २. हंता अरिं च जम्मं अरहंता तेण वुच्वंति । (मू० आ० ५६१) १२. अरिहंतनमुक्कारो एवं खलु वण्णिओ महत्थुत्ति । जो मरणम्मि उवग्गे अभिक्खणं कीरए बहुसो ।। (आव० नि० ६१६) अरिहंत भगवान् को नमस्कार द्वादशांगी का सार होने से महान् अर्थ वाला है, क्योंकि मृत्यु उपस्थित होने पर इस नमस्कार का ही बार-बार स्मरण किया जाता है।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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