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________________ महावीर वाणी ३. पंच परमेष्ठी स्वरूप १. अरुहा सिद्धायरिया उज्झाया साहू पंच परमेट्ठी। (मो० पा० १०४) अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु-ये पांच परमेष्ठी हैं। २. मग्गे अविप्पणासो आयारे विणयया सहायत्तं। पंचविहनमुक्कारं करेमि एएहिं हेऊहिं।। (आव० नि० ८६७) अरिहंत भगवान् मोक्ष के सत्य मार्ग के दर्शक हैं, सिद्ध भगवान् अविनाशी हैं, आचार्य स्वयं आचार का पालन करते हुए अन्यों से आचार का पालन कराते हैं, उपाध्याय स्वयं विनीत हैं और दूसरों को विनीत बनाने वाले हैं, साधु मोक्ष के साधकों की सहायता करने वाले हैं-इन कारणों से मैं पंच परमेष्ठी को नमस्कार करता हूं। ३. अडवीइ देसिअत्तं तहेव निज्जामया समुद्दम्मि। छक्कायरक्खणट्ठा महगोवा तेण वुच्चंति।। (आव० नि० ८६८) संसार-रूप अटवी में अरिहतं भगवान् मार्ग बताने वाले हैं, संसार-रूप समुद्र में अरिहतं भगवान् निर्यामक (जीवन-रूप नैया को पार कराने वाले) हैं। छह जीवनिकाय के रक्षण करने वाले हैं, इसलिये अरिहतं भगवान् महागोप भी कहलाते हैं। ४. संसाराअडवीए मिच्छत्तऽन्नाणमोहिअपहाए। जेहिं कय देसिअत्तं ते अरिहंते पणिवयामि।। - (आव० नि० ६०६) मिथ्यात्व और अज्ञान के अंधकार से जहाँ मार्ग का पता ही नहीं लगता, ऐसी संसार-रूप अटवी में जिन्होंने मार्ग प्रदर्शित किया उन अर्हन्तों को मैं नमस्कार करता हूं। ५. इंदिय-विसय-कसाये परीसहे वेयणाओ उवसग्गे। एए अरिणो हंता अरिहंता तेण वुच्चंति ।। __ (आव० नि० ६१३) . विषयासक्त इन्द्रियाँ, विषय, कषाय-क्रोध-अहंकार-माया-लोभ, परीषह, वेदना और उपसर्ग-इन शत्रुओं का हनन करते हैं, इस कारण ये अरिहंत भगवान् कहलाते हैं। ६. अट्ठविहं पि य कम्मं अरिभूयं होइ सव्वजीवाणं।। तं कम्ममरिं हंता अरिहंता तेण वुच्चंति।। (आव० नि० ६१४) आठ प्रकार का कर्म सर्व जीवों का बड़ा शत्रु है। आठ प्रकार के कर्मरूपी शत्रु को ये नष्ट करते हैं, अतः ये अरिहंत भगवान् कहलाते हैं।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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