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________________ ४ सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं ।। १३. अरिहंतनमुक्कारो ( आव० नि० ६२० ) अरिहंत भगवान् को किया हुआ नमस्कार सर्व पापों का सर्वथा नाश करने वाला है और सर्व मंगलों में प्रथम मंगल है। १४. णट्ठट्ठकम्मबंधा अट्ठमहागुणसमण्णिया परमा। लोयग्गठिहा णिच्चा सिद्धा ते एरिसा होंति । । महावीर वाणी (नि० सा० ७२ ) आठ कर्मों के बन्धन को जिन्होंने नष्ट किया है, आठ महागुणों सहित, परम, लोकाग्र में स्थित और नित्य ऐसे वे सिद्ध भगवान् होते हैं। १५. निच्छिन्नसव्वदुक्खा जाइ-जरा-मरण- बंधण- विमुक्का । अव्वावाहं सोक्खं अणुहवंती सया कालं ।। (आव० नि० ६८२) जिनके सर्व दुःख नष्ट हो चुके हैं, जन्म-जरा-मृत्यु और कर्मबंध से जो सर्वथा मुक्त हैं - ऐसे सिद्ध भगवान् सदा काल अव्याबाध सुख का अनुभव करते हैं। १६. सिद्धाण नमुक्कारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ । भावेण कीरमाणो होइ पुणो बोहिलाभाए ।। (आव० नि० ६८३) सिद्ध भगवान् को भाव से किया हुआ नमस्कार जीव को अनन्त भवों की परंपरा से मुक्त करता है, तथा पुनः बोधि की प्राप्ति का कारण बनता है । १७. सिद्धाण नमुक्कारो धन्नाणं भवक्ख्यं कुणंताणं । हिअयं अणुम्मुअंतो विसुत्तिआवारओ होइ ।। ( आव० नि० ६८४) धन्यवाद के पात्र जिन मनुष्यों का हृदय सिद्धों के प्रति नमस्कार से सदा सुवासित है, उनके हृदय में दुर्ध्यान प्रवेश नहीं कर सकता । १८. सिद्धाण नमुक्कारो एवं खलु वण्णिओ महत्थुत्ति । जो मरणम्मि उवग्गे अभिक्खणं कीरए बहुसो ।। (आव० नि० ६८५) सिद्ध भगवान् को नमस्कार द्वादशांगी का सार होने से महान् अर्थ वाला है, क्योंकि मृत्यु उपस्थित होने पर इसी का बार- बार स्मरण करने में आता है। १६. सिद्धाण नमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं बिइयं हवइ मंगलं । । ( आव० नि० ६८६ ) सिद्ध भगवान् को किया हुआ नमस्कार सर्व पापों का सर्वथा नाश करने वाला है और सर्व मंगलों में दूसरा मंगल है।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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