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________________ ३१. भावनायोग २४७ ७. जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई। अहम्मं कुणमाणस्स अफला जंति राइओ।। (द० १४ : २४) जो-जो रात्रि बीतती है, वह लौटकर नहीं आती। अधर्म करनेवाले की रात्रियाँ निष्फल जाती हैं। ८. जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई। धम्मं च कुणमाणस्स सफला जंति राइओ।। (द० १४ : २५) जो-जो रात्रि बीतती है, वह लौटकर नहीं आती। धर्म करनेवाले की रात्रियाँ सफल जाती हैं। ६. अद्धाणं जो महंतं तु अपाहेओ पवज्जई। गच्छंतो सो दुही होइ छुहातहाए पीडिओ।। एवं धम्म अकाऊणं जो गच्छइ परं भवं। गच्छंतो सो दुही होइ वाहीरोगेहिं पीडिओ।। (उ० १६ : १८-१६) जैसे कोई लम्बी यात्रा के लिए निकले और साथ में पाथेय (अन्न-जल) न ले तो जाता हुआ क्षुधा और तृषा से पीड़ित होकर दुःखी होता है, वैसे ही जो धर्म न कर परभव को जाता है वह यात्रा में व्याधि और रोग से पीड़ित होकर दुखी होता है। १०. अद्धाणं जो महंतं तु सपाहेओ पवज्जई। गच्छंतो सो सुही होइ छुहातण्हाविवज्जिओ।। एवं धम्म पि काऊणं जो गच्छइ परं भवं । गच्छंतो सो सुही होइ अप्पकम्मे अवेयणे।। (उ० १६ : २०-२१) जैसे कोई लम्बी यात्रा के लिए निकलने पर साथ में पाथेय (अन्न-जल) लेता है, तो जाता हुआ क्षुधा और तृषा से पीड़ित न होकर खुशी होता है, वैसे ही जो धर्म कर परभव को जाता है, वह प्राणी अल्प कर्म और अवेदना के कारण यात्रा में सुखी रहता है। ११. जहा सागडिओ जाणं समं हिच्चा महापहं । विसमं मग्गमोइण्णो अक्खे भग्गंमि सोयई ।। एवं धम्म विउक्कम्म अहम्म पडिवज्जिया। बाले मच्चुमुहं पत्ते अक्खे भग्गे व सोयई।। (उ० ५ : १४, १५) जिस प्रकार कोई जानकार गाड़ीवान समतल विशाल मार्ग का परित्याग कर विषम मार्ग को ग्रहण करने पर गाड़ी की धुरी टूट जाने से खेद करता है, उसी प्रकार धर्म का उल्लंघन कर अधर्म को अंगीकार कर मूर्ख मृत्यु के मुँह को प्राप्त हो धुरी टूट जानेवाले गाड़ीवान की तरह खेद करता है।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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