SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ " पुष्प २८. लाक्षणिक २०५ विनीत शिष्य सोचता है-मुझे पुत्र, भाई, ज्ञाति मानकर गुरु मुझ पर शासन कर रहे हैं। इस तरह विनीत साधु गुरु के अनुशासन को कल्याणकारी मानता है परन्तु पाप-दृष्टि शिष्य शासित किये जाने पर अपने को दास की तरह सोचने लगता है। ५. अणासवा थूलवया कुसीला मिउं पि चण्डं पकरेंति सीसा। चित्ताणुया लहु दक्खोववेया पसायए ते हु दुरासयं पि।। (उ० १ : १३) गुरु के वचन को न माननेवाले और बिना विचारे बोलनेवाले कुशील शिष्य मृदु स्वभाववाले गुरु को भी क्रोधी कर देते हैं। गुरु के चित्त के अनुसार चलनेवाले और थोड़े बोलनेवाले चतुर शिष्य अति क्रोधी गुरु को भी अपने गुणों से प्रसन्न कर लेते हैं। ६. आणानिद्देसकरे गुणमुववायकारए। इंगियागारसंपन्ने से विणीए त्ति वुच्चई ।। (उ० १ : २) गुरु की आज्ञा और निर्देश का पालन करनेवाला, उसके समीप रहनेवाला (अथवा शुश्रूषा करनेवाला) तथा गुरु के इंगित और आकार को भलीभाँति समझनेवाला शिष्य विनीत कहलाता है। ७. आणाऽनिद्देसकरे गुरूणमणुववायकारए। पडिणीए असंबुद्धे अविणीए त्ति वुच्चई।। (उ० १:३) जो गुरु की आज्ञा और निर्देश का पालन करनेवाला नहीं होता, उसके समीप नहीं रहता (अथवा शुश्रूषा नहीं करता) तथा जो प्रतिकूल चलनेवाला और बोधरहित होता है, वह अविनीत कहलाता है। ८. दुग्गओ वा पओएणं चोइओ वहई रहं। एयं दुबुद्धि किच्चाणं वुत्तो वुत्तो पकुव्बई।। (द० ६ (२) : १६) जैसे दुष्ट बैल चाबुक आदि से प्रेरित होने पर रथ को वहन करता है, वैसे ही दुर्बुद्धि शिष्य आचार्य के बार-बार कहने पर ही कार्य करता है। ६. जे यावि चंडे मइइड्ढिगारवे पिसुणे नरे साहस हीणपेसणे। अदिठ्ठधम्मे विणए अकोविए असंविभागी न हु तस्स मोक्खो।। (द० ६ (२) : २२) जो नर चण्ड है, जिसे बुद्धि और ऋद्धि का गर्व है, जो पिशुन है, जो साहसिक है, जो गुरु की आज्ञा का यथासमय पालन नहीं करता, जो अदृष्ट-(अज्ञात-) धर्मा है, जो विनय में अकोविद है, जो असंविभागी है उसे मोक्ष प्राप्त नहीं होता।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy