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महावीर वाणी
४. वीतराग
१. चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु। तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु व वीयरागो।।
(उ० ३२ : २२) जो चक्षु का ग्रहण-विषय है, उसे रूर कहा गया है। (चक्षु का जो विषय है वह रूप है)। जो रूप राग का हेतु होता है; उसे मनोज्ञ कहा गया है। जो रूप द्वेष का हेतु होता है, उसे अमनोज्ञ कहा गया है। जो मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूपों में सम होता है, वह वीतराग है। २. सोयस्स सदं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो।।
(उ० ३२ : ३५) जो श्रोत्र का ग्रहण-विषय है, उसे शब्द कहा गया है। (श्रोत का जो विषय है वह शब्द है)। जो शब्द राग का हेतु होता है, उसे मनोज्ञ कहा गया है। जो शब्द द्वेष का हेतु होता है, उसे अमनोज्ञ कहा गया है। जो मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्दों में सम होता है वह वीतराग है। ३. घाणस्स गंधं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो।।
(उ० ३२ : ४८) जो घ्राण का ग्रहण-विषय है, उसे गन्ध कहा गया है। (घ्राण का विषय है वह गन्ध है)। जो गन्ध राग का हेतु होता है, उसे मनोज्ञ कहा गया है। जो गन्ध द्वेष का हेतु होता है, उसे अमनोज्ञ कहा गया है। जो मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्धों में सम होता है, वह वीतराग है। ४. जीहाए रसं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो।।
(उ० ३२ : ६१) जो जिहा का ग्रहण-विषय है, उसे रस कहा गया है। (जिहा का जो विषय है वह रस है)। जो रस राग का हेतु होता है, उसे मनोज्ञ कहा गया है। जो रस द्वेष का हेतु होता है, उसे अमनोज्ञ कहा गया है। जो मनोज्ञ और अमनोज्ञ रसों में सभ होता है वह वीतराग है।