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६. णिम्ममो णिरहंकारो णिक्कसाओ जिदिदिओ धीरो । अणिदाणो दिठिसंपण्णो मरंतो आराहओ होइ ।।
महावीर वाणी
(मू० १०३)
जो ममतारहित है, अभिमानरहित है, कषायरहित है, जितेन्द्रिय है, धीर है, निदानरहित है और सम्यकदृष्टि से सम्पन्न है, ऐसा जीव मरता हुआ आराधक होता है।
२. सुगति : सुलभ-दुर्लभ
१. तवोगुणपहाणस्स उज्जुमइ खंतिसंजमरयस्स । परीसहे जिणंतस्स सुलहा सुग्गइ तारिसगस्स ।। (द० ४ : २७) जिसके जीवन में तपरूपी गुण की प्रधानता है, जो ऋजुमति है, जो क्षान्ति और संयम में रत है तथा जो परीषहों को जीतनेवाला है - ऐसे पुरुष के लिए सुगति सुलभ है।
२. सुहसायगस्स समणस्स सायाउलगस्स निगामसाइस्स । उच्छोलणापहोइस्स दुलहा सुग्गइ तारिसगस्स ।। (द० ४ : २६)
जो श्रमण सुख का स्वादी होता है, सात-सुख के लिए आकुल होता है, जो अकाल में सोनेवाला होता है और जो हाथ- -पैर आदि को बार-बार धोनेवाला होता है-ऐसे साधु के लिए सुगति दुर्लभ है।
३. जिणवयणे अणुरत्ता जिणवयणं जे करेंति भावेण ।
अमला असंकिलिट्ठा ते होंति परित्तसंसारी ।।' (उ० ३६ : २६०)
जो जीव जिन-वचनों में अनुरक्त, जिन-वचनों के अनुसार भाव से आचरण करने वाले, मिथ्यात्व-मल और रागादि क्लेशों से रहित हैं, वे परित-संसारी (अल्प जन्म-मरण करनेवाले) होते हैं।
४. मरणे विरधिदे देवदुग्गई दुल्लहा य किर बोही । संसारों य अणंतो होइ पुणो आगमे काले । ।
(मू० ६१) मरण के समय जो सम्यक्त्व की विराधना करते हैं, उनकी नीच देवगति होती है और उन्हें बोधि दुर्लभ होती है। ऐसे जीवों के आगामी काल में अनन्त संसार होता है । ५. जे पुण गुरुपडिणीया बहुमोहा ससबला कुसीला य ।
असमाहिणा मरते ते होंति अनंतसंसारा । (मू० ७१)
गुरुओं के प्रतिकूल है, बहुत मोहवाले हैं, बड़े दोषों का सेवन करनेवाले हैं - ऐसे जीव असमाधिपूर्वक मरण कर अनन्त संसारी होते हैं ।
१. मू० ७० ।