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(: २६ :) सुलभ-दुर्लभ
१. बोधि : दुर्लभ-सुलभ १. मिच्छादसणरत्ता सनियाणा हु हिंसगा।
इय जे मरंति जीवा तेसिं पुण दुल्लहा बोही।। (उ० ३६ : २५७)
जो जीव मिथ्यादर्शन में रत हैं, जो निदान (फल पाने की कामना) सहित हैं तथा जो हिंसा में प्रवृत्त हैं-ऐसी स्थिति में जो जीव मरते हैं उनके लिए पुनः बोधि (सम्यक्त्व) का पाना दुर्लभ है। २. सम्मइंसणरत्ता अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा।
इय जे मरति जीवा सुलहा तेसिं भवे बोही।।' (उ० ३६ : २५८)
जो सम्यक्दर्शन में अनुरक्त, निदान से रहित और शुक्ललेश्या में प्रतिष्ठित है-ऐसी स्थिति में जो जीव मरते हैं, उनके लिए बोधि का पाना सुलभ होता है। ३. मिच्छादंसणरत्ता सनियाणा कण्हलेसमोगाढा। ...
इय जे मरंति जीवा तेसिं पुण दुल्लहा बोही।।२ (उ० ३६ : २५६)
जो जीव मिथ्यादर्शन में रत, निदान से सहित तथा कृष्णलेश्या में प्रतिष्ठित हैं-इस प्रकार की स्थिति में जो जीव मरते हैं, उन्हें पुनः बोधि प्राप्त होना दुर्लभ है। ४. जे पुण पणट्ठमदिया पचलियसण्णा य वक्कभावा य।
असमाहिणा मरते ण हु ते आराहया भणिया।। (मू०६०)
जिनकी बुद्धि नष्ट हो गई है. जिनकी आहारादि की संज्ञाएँ क्रियाशील हैं, जिनके परिणाम वक्र हैं वे जीव असमाधिपूर्वक मरण प्राप्त कर परलोक में जाते हैं। वे आराधक नहीं कहे गये हैं। ५. बालमरणाणि बहुसो बहुयाणि अकामयाणि मरणाणि।
मरिहंति ते वराया जे जिणवयणं ण जाणंति।। (मू० ७३)
जो जीव जिनदेव के वचनों को नहीं जानते वे अनाथ बहुत प्रकार के बालमरण करते हुए अनेक अकाम मरणों को प्राप्त होते हैं।
१. मू०७०। २. मू०६६।