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२५. संगति
२. सुभासियाए भासाए सुकडेण य कम्मुणा । पंडितं तं वियाणेज्जा धम्माधम्म - विणिच्छए । ।
३. दुभासियाए भासाए दुक्कडेण य कम्मुणा । जोगक्खेमं वहंतं तु उसु वायो व सिंचति ।।
सुभाषित वाणी, सुकृत कर्म और धर्माधर्म के विनिश्चय के द्वारा यह पंडित है, ऐसा समझा जा सकता है।
४. सुभासियाए भासाए सुकडेण य कम्मुणा । पज्जण्णे कालवासी वा जसं तु अभिगच्छति । ।
(इसि० ३३ : ३)
दुर्भाषित वाणी और दुष्कृत कर्म के द्वारा जो योगक्षेम का वहन करना चाहता है, वह मानो ईख को वायु से सिंचन करता है ।
५. णेव बालेहि संसग्गिं णेव बालेहिं संथवं । धम्माधम्मं च बालेहिं णेव कुज्जा कडाइ वि ।।
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(इसि० ३३ :
(इसि० ३३ : ४)
सुभाषित वाणी और सुकृत कर्मों के द्वारा मानव समय पर बरसनेवाले मेघ के सदृश यश को प्राप्त करता है।
६. इहेवाऽकित्ति पावेहि पेच्चा गच्छेइ दोग्गतिं । तम्हा बालेहिं संसग्गिं णेव कुज्जा कदावि वि ।।
२)
(इसि० ३३ : ५)
साधक अज्ञानियों का संसर्ग न करे और न उनसे परिचय ही रखे । उनके साथ धर्मा-धर्म की चर्चा भी कभी न करे ।
७. साहूहिं संगमं कुज्जा साहूहिं चैव संथवं । धम्माधम्मं च साहूहिं सदा कुव्विज्ज पंडिए । ।
(इसि० ३३ : ६)
पापों के द्वारा यहाँ भी अपयश मिलता है और बाद में आत्मा दुर्गति को जाती है । अतः साधक अज्ञानी आत्माओं का संसर्ग कभी न करे ।
८ इहेव कित्तिं पाउणति पेच्चा गच्छइ सोगतिं । तम्हा साधूहि संसग्गि सदा कुविज्ज पंडिए ।।
(इसि० ३३ : ७)
साधक साधु पुरुषों का संगम करे और साधु पुरुषों का ही संस्तव करे । प्रज्ञाशील पुरुष धर्म की चर्चा भी साधु पुरुषों के साथ ही करे ।
(इसि० ३३८)
संत पुरुषों के संग के द्वारा आत्मा यहाँ पर यश प्राप्त करती है और परलोक
में
शुभ गति। अतः सदा साधुओं की ही संगति करे ।