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महावीर वाणी
कोई शिखाधारी हो, जटाधारी हो, मुंड हो, नग्न हो, वस्त्रधारी हो-यदि वह असत्य वचन बोलता है तो उसकी ये सारी बातें विडम्बना-स्वरूप हैं। ५. जह परमण्णस्स विसं विणासयं जह व जोव्वणस्स जरा। तह जाण अहिंसादी गुणाण य विणासयमसच्च।।
(भग० आ० ८४५) जैसे विष क्षीर का विनाश कर देता है और जरा यौवन का विनाश कर देती है, वैसे ही असत्य को अहिंसा आदि सर्व गुणों का विनाशक समझना चाहिए। ६. ण डहदि अग्गी सच्चेण णरं जलं च तं ण बुड्डेइ। सच्चबलियं खु पुरिसं ण वहदि तिक्खा गिरिणदी वि।।
(भग० आ० ८३८) सत्यवादी को अग्नि नहीं जला पाती, पानी डुबोने में असमर्थ होता है। सत्य से बली पुरुष को बड़े वेग से पर्वत पर से गिरनेवाली नदी भी नहीं बहा पाती। ७. अलियं स किं पि भणिदं घादं कुणदि बहुगाण सव्वाणं। अदिसकिदो य सयमवि होदि अलियभासणो पुरिसो।।
(भग० आ० ८४७) एक बार भी बोला हुआ असत्य भाषण अनेक बार बोले हुए सत्य भाषाणों का संहार कर देता है। असत्यवादी पुरुष स्वयं भी मन में शंकित रहता है। ८. सच्चं धितिं कुव्वह।
(आ० १, ३ (२) : ४०) तू सत्य में धृति कर। ६. एत्थोवरए मेहादी सव्वं पाप-कम्मं झोसेति।
(आ० १, ३ (२) : ४१) सत्य में रत रहनेवाला मेधावी सर्व पाप-कर्म का क्षय कर डालता है। १०. पुरिसा ! सच्चमेव समभि जाणाहि। (आ० १, ३ (३) : ६५) - हे पुरुष ! तू सत्य को अच्छी तरह जान। .११. सच्चस्स आणाए उपट्ठिए से मेहाबी मारं तरति।
(आ० १, ३ (३) : ६६) जो सत्य की आज्ञा में उपस्थित है वह मेधावी मृत्यु को तर जाता है।