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________________ १४४ महावीर वाणी कैसे चले ? कैसे खड़ा हो ? कैसे बैठे ? कैसे सोए ? कैसे खाए ? कैसे बोले :जिससे पाप-कर्म का बन्ध न हो। ८. जयं चरे जयं चिट्ठे जयमासे जयं सए। जयं भुंजतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई।।' (द० ४ : ८) यतनापूर्वक चलने, यतनापूर्वक खड़ा होने, यतनापूर्वक बैठने, यतनापूर्वक सोने, यतनापूर्वक भोजन करने और यतनापूर्वक बोलनेवाला संयमी पुरुष पाप-कर्मों का बन्ध नहीं करता। ६. सव्वभूयप्पभूयस्स सम्मं भूयाइं पासओ। पिहियासवस्स दंतस्स पावं कम्मं न बंधई।। (द० ४ : ६) जो जगत् के सब जीवों को आत्मवत् समझता है, जो जगत् के सब जीवों को समभाव से देखता है, जो आस्रव का निरोध कर चुका और जो दान्त है, उसके पाप-कर्म का बन्ध नहीं होता। १०. आदाणे णिक्खेव वोसरणे ठाणगमणसयणेसु। सव्वत्थ अप्पमत्तो दयापरो होहु हु अहिंसो।। (भग० आ० ८१८) किसी वस्तु को उठाने में, रखने में, त्याग करने में तथा खड़ा होने, चलने, शयन करने आदि कार्यों में सर्वत्र अप्रमत्त रहता हुआ जो दयावान् होता है, वह निश्चय ही अहिंसक है। ११. जीवो कसायबहुलो संतो जीवाण घायणं कुणइ। सो जीवहं परिहरदु सया जो णिज्जियकसाओ।। (भग० आ० ८१७) जीव कषाय के अत्यन्त वश में होकर जीवों का घात करता है। जो कषाय को जीत लेता है, वह सदा जीव-हिंसा का परिहार करता है अर्थात् सदा अहिंसक है। १२. जं जीवणिकायवहेण विणा इंदियकयं सुहं णत्थि। तम्हि सुहे निस्संगो तम्हा सो रक्खदि अहिंसा।। (भग० आ० ८१६) जीवों का वध किए बिना इन्द्रिय-जन्य सुखों की प्राप्ति नहीं होती। अतः जिसकी इन्द्रिय-सुख में आसक्ति नहीं होती वही अहिंसा का रक्षण करता है। १. मू० १०१३ : जदं चरे जदं चिट्ठे जदं मासे जदं सये। जदं भुजेज्ज भासेज्ज एवं पावं न बज्झई।।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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