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________________ १४० महावीर वाणी १६. भूतेसु ण विरुज्झेज्जा एस धम्मे वुसीमओ।। (सू० १, १५ : ४) ____ भूतों से विरोध न करे, यही संयमियों का धर्म है। २०. अणेलिसस्स खेयण्णे ण विरुज्झज्ज केणइ। मणसा वयसा चेव कायसा चेव चक्खुमं। (सू० १, १५ : १३) संयम में निपुण परमार्थदर्शी पुरुष मन, वचन और काया से किसी से विरोध न करे। [७] २१. उड्डं अहं यं तिरियं दिसासु तसा य जे थावर जे य पाणा। सया जए तेसु परिव्वएज्जा माणप्पओसं अविकंपमाणे ।। (सू० १, १४ : १४) ऊर्ध्व, अधः और तिर्यक्-तीनों दिशाओं में जो त्रस और स्थावर प्राणी हैं, उनके प्रति सदा यत्नवान् रहता हुआ जीवन बिताये। संयम में अडोल रहता हुआ मन से भी द्वेष न करे। [८] २२. पुढवी य आऊ अगणी य वाऊ तण रुक्ख वीया य तसा य पाणा। जे अंडया जे य य जराउ पाणा संसेयया जे रसायाभिहाणा।। एताई कायाइं पवेइयाई एतेस जाणे पडिलेह सायं। एतेहि काएहि य आयदंडे पुणो-पुणो विप्परियासुवेति ।। (सू० १, ७ : १-२) (१) पृथ्वी, (२) जल, (३) तेज, (४) वायु, (५) तृण, वृक्ष, बीज आदि वनस्पति। इन सब स्थावर तथा (६) अण्डज, जरायुज, स्वेदज, रसज-इन सब त्रस प्राणियों को ज्ञानियों ने जीव-निकाय कहा है। इन सबमें सुख की इच्छा है, यह जानो और समझो। जो इन जीव-कायों का नाश कर पाप-संचय द्वारा अपनी आत्मा को दंडित करता है, वह बार-बार इन्हीं प्राणियों की योनि में जन्म धारण करता है। २३. हम्ममाणो ण कुप्पेज्जा वुच्चमाणो ण संजले। सुमणो अहियासेज्जा ण य कोलाहलं करे।। (सू० १, ६ : ३१) ___ कोई पीटे तो क्रोध न करे। कोई दुर्वचन कहे तो प्रज्वलित न हो। इन सब परीषहों को सु-मन से (समभाव से) सहन करे और कोलाहल (हल्ला) न मचाए।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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