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महावीर वाणी
___जो पूर्वोक्त गुणों से युक्त हैं, दुःखों को सहन करनेवाला है, जितेन्द्रिय है, श्रुतवान् है, मानव-रहित और अकिंचन है, वह कर्मरूपी बादलों के दूर होने पर उसी प्रकार शोभित होता है जिस प्रकार सम्पूर्ण अभ्र-पटल से वियुक्त चन्द्रमा । ४. खवेंति अप्पाणममोहदंसिणो तवे रयासंजम अज्जवे गुणे । धुणति पावाइं पुरेकिडाइं नवाइ पावाइं न ते करेंति।।
(द० ६ : ६७) अमोहदर्शी, तप, संयम और ऋजुतारूप गुण में पुरुष शरीर को कृश कर देते हैं। वे पुराकृत पाप का नाश करते हैं और नये पाप नहीं करते। ५. सओवसंता अममा अकिंचणा सविज्जविज्जाणुगया जससिणो। उउप्सन्ने विमले च चंदिमा सिद्धिं विमाणाइ उति ताइणो।।
(द० ६ : ६८) ___ सदा उपशान्त, ममता-रहित, अकिंचन, आत्म-विद्यायुक्त, यशस्वी और त्राता पुरुष शरद ऋतु के चन्द्रमा की तरह मलरहित होकर सिद्धि या सौधर्मावतंसक आदि विमानों को प्राप्त करते हैं।