SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर वाण ४. राग-द्वेष-मोह क्षय-विधि १. रागं च दोसं च तहेव मोहं उद्धत्तुकामेण समूलजालं। जे जे उवाया पडिवज्जियव्वा ते कित्तइस्सामि अहाणुपुल्लिं ।। (उ० ३२ : ६) राग, द्वेष और मोह को समूल उखाड़ डालने की कामना रखनेवाले पुरुष को जिन-जिन उपायों का आश्रय लेना चाहिए, उन्हें मैं यथाक्रम कहूँगा। २. रसा पगामं न निसेवियव्वा पायं रसा दित्तिकरा नराणं। दित्तं च कामा समभिद्दवन्ति दुमं जहा साउफलं व पक्खी।। (उ० ३२ : १०) घी, दूध आदि रसों का बहुत मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए। रस पदार्थ प्रायः मनुष्यों के लिए उद्दीपक होते हैं। जिस तरह पक्षी स्वादिष्ट फल वाले वृक्ष की ओर दौड़े चले जाते हैं, उसी तरह से दीप्त वीर्यवान पुरुष की ओर काम-वासनाएँ दौड़ी चली आती हैं। ३. जहा दवग्गी पउरिंधणे वणे समारुओ नोवसमं सवेइ। एविंदियग्गी वि पगामभोइणो न बम्भयारिस्स हियाय कस्सई ।। (उ० ३२ : ११) जिस तरह प्रचुर काष्ठ से भरे हुए वन में अग्नि लग जाय और साथ ही पवन चलती हो तो दावाग्नि नहीं बुझती, उसी तरह से अति मात्रा में आहार करनेवाले मनुष्य की इन्द्रियाग्नि शान्त नहीं होती। किसी भी ब्रह्मचारी के लिए प्रकाम भोजन-अति आहार हितकर नहीं है। ४. विवित्तसेज्जासणजन्तियाणं ओमासणाणं दमिइन्दियाणं। न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं पराइओ वाहिरिवोसहेहिं।। (उ० ३२ : १२) जो एकान्त शय्यासन के सेवी हैं, अल्पाहारी हैं और जितेन्द्रिय हैं, उनके चित्त को विषयरूपी शत्रु वैसे ही आक्रांत नहीं कर सकता जैसे औषधि से परजित व्याधि शरीर को। (औषधि से जैसे व्याधि पराजित हो जाती है, वैसे ही इस नियम के पालन से विषयरूपी शत्रु पराजित हो जाता है)। ५. जहा बिरालावसहस्स मूले न मूसगाणं वसही पसत्था। एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे न बम्भयारिस्स खमो निवासो।। (उ० ३२ : १३) जैसे बिल्लियों के वास के समीप में चूहे का रहना प्रशस्त नहीं, उसी तरह से जिस मकान में स्त्रियों का वास हो, उस स्थान में ब्रह्मचारी के रहने में क्षेम-कुशल नहीं।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy